Reported By: Ved Prakash Mishra
Published on: Aug 20, 2021 | 9:46 PM
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हाटा/कुशीनगर। संस्कृति का अर्थ है परिमार्जित संस्कारों से युक्त मनुष्यों की सभ्यता। हमारी आत्मा,हमारी अस्मिता,भारत की भारतीयता उसकी संस्कृति में है,जिसका प्राण संस्कृत भाषा है। संस्कृति व्यक्ति के विकास के साथ साथ आन्तरिक विकास की भी बोधक होती है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति का आधार संस्कृत साहित्य है।
उक्त बातें शंक्रवार को नगर स्थित श्रीनाथ संस्कृत महाविद्यालय के सभागार में महाविद्यालय द्वारा देश के विकास में संस्कृत का योगदान विषय पर आयोजित संगोष्ठी व अभिनन्दन समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति प्रो़ हरेराम त्रिपाठी ने कही। उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा है। इसी लिए इसका नाम संस्कृत है। संस्कृत भाषा अन्य भाषाओं की तरह केवल अभिव्यक्ति का साधन मात्र ही नहीं है अपितु वह मनुष्य के सर्वाधिक संपूर्ण विकास की कुंजी भी है। उन्होंने कहा कि भाषा संस्कृति की वाहिका होती है। भारतीय संस्कृति के सभी पक्षों जैसे ऐतिहासिक,आर्थिक,धार्मिक,प्राकृतिक,राजनैतिक तथा कला,ज्ञान विज्ञान आदि का सूक्ष्म तथा वास्तविक ज्ञान संस्कृत भाषा के माध्यम से ही हो सकता है।
मुख्य वक्ता संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के प्रो़ रामकिशोर त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत भाषा भारत की सांस्कृतिक एकता को बनाये रखने वाली सबसे बड़ी शक्तियों में से एक है जिस पर राजनीतिक एकता भी निर्भर है। आधुनिक भारतीय भाषाओं के हित में संस्कृत का संरक्षण व संवर्धन व विकास अत्यन्त आवश्यक है। संस्कृत भाषा का साहित्य विश्व का सबसे प्राचीन और समृद्ध साहित्य है यह न केवल भारत को एक सूत्र में पिरोता है अपितु सम्पूर्ण विश्व को मानवता की शिक्षा देता है। भारत विश्व का प्राचीन राष्ट्र होने के कारण ज्ञान विज्ञान का आदि राष्ट्र है। आज विश्व में विविध प्रकार के ज्ञान विज्ञान की जो चमक दिखाई देती है उसके बीज भारत से ही दुनिया भर में गये इसी लिए भारत को विश्व गुरु कहा जाता था। उन्होंने कहा कि एक से नौ तक के अंक, शून्य और दशमलव की पद्धति इन सबका आविष्कार भारत में ही हुआ।बीजगणित का विकास भारत में हुआ और और पूरे विश्व में पहुंचा। प्रो़ शैलेष मिश्र ने कहा कि संस्कृत भाषा से ही विश्व की अनेक भाषाओं की उत्पत्ति हुई है।विश्व की अधिकांश भाषाओं में संस्कृत भाषा के शब्द मिश्रित हैं जो उनके व्यवहारिक प्रयोग को सरल करने में सहायक हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अध्यक्ष भूमि विकास बैंक उत्तर प्रदेश संतराज यादव ने कहा कि देश के योगदान में संस्कृत की भूमिका को नकारा नही जा सकता है। आधुनिक समय में विज्ञान के जिन आविष्कारों को हम देख रहे हैं उसे प्राचीन समय के हमारे मनीषियों ने करके दिखा दिया था।
संगोष्ठी के पूर्व महाविद्यालय के परिसर में निर्मित होने वाले संकट मोचन हनुमान मंदिर का कुलपति प्रो़ त्रिपाठी ने शिलान्यास किया।
आगन्तुकों का स्वागत प्रबन्ध समिति के मंत्री गंगेश्वर पाण्डेय ने किया तथा आभार प्रबन्धक अग्निवेश मणि ने व्यक्त किया।
कार्यक्रम का संचालन प्रवक्ता नन्दा पांडेय ने किया। इस दौरान शिक्षक नेता जगदीश पांडेयप्रवन्ध समिति के अध्यक्ष जयप्रकाश पांडेय,प्राचार्य डॉ रजेश चतुर्वेदी, विश्वास मणि, दयाशंकर मिश्र,मोहन पांडेय,संजय पांडेय,विनय मणि, डॉ अरुण कुमार श्रीवास्तव,रामानुज दुबे,सतीश शुक्ल,पूर्व प्रमुख़ प्रदीप मिश्र,राम सुभाष पांडेय,विश्व रूपक त्रिपाठी, भागवत मिश्र,संजय कुमार मिश्र,अनिल तिवारी, अभय मणि, विनय मिश्र,आशुतोष मिश्र,सधीर चौहान,रजनीश पांडेय,चन्देश्वर परवाना,नवीन त्रिपाठी,व्यास मिश्र,दिलीप जायसवाल, बृक्षमित्र एसपी सिंह,डी के पांडेय,धीरज राव सहित विद्यालय के समस्त शिक्षक मौजूद रहे।
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