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भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि कवि थे तुलसीदास

न्यूज अड्डा डेस्क

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Published on: Aug 4, 2022 | 7:44 PM
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भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि कवि थे तुलसीदास
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मल्लूडीह/कुशीनगर। आज तुलसीदास की जयंती के अवसर पर बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय कुशीनगर में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर परिचर्चा आयोजित हुई। परिचर्चा को सम्बोधित करते हुए हिंदी के विभागाध्यक्ष डॉ राजेश सिंह ने कहा कि तुलसी हिंदी के सबसे बड़े कवियों में हैं। उन्होंने सामाजिक अराजकता के समय में राम के चरित्र के माध्यम से मर्यादावादी समाज के आदर्श को रखा।

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हिंदी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ गौरव तिवारी ने कहा कि तुलसी ने लोक और शास्त्र के समन्वय के साथ साथ शैव, शाक्त और वैष्णव का भी समन्वय किया। यह उस समय की बड़ी आवश्यकता थी। वो लोक मन के सबसे बड़े चितेरे थे।संस्कृत विभाग के डॉ सौरभ द्विवेदी ने कहा तुलसी ने लिखा तो स्वान्तः सुखाय कहकर किंतु यह सर्वहित सुखाय की भूमिका का निर्वहन कर रही हैं।

शिक्षाशास्त्र के सहायक आचार्य डॉ पंकज दुबे ने कहा रामचरित मानस में आई लोकमंगल की भावना का प्रभाव पूरे समाज पर है। राजनीति विज्ञान के डॉ राजेश जायसवाल ने कहा कि राम चरित मानस के माध्यम से भारतीय संस्कृति को नयी पहचान दी है। डॉ अर्जुन सोनकर ने कहा कि मुगल काल में हिंदुओं की सनातन परंपरा को घरों में मजबूती के साथ पहुँचाया। डॉ राकेश सोनकर ने कहा कि तुलसीदास ने बनारस की संस्कृति को जीवंत किया है। डॉ आशुतोष तिवारी ने कहा कि तुलसी भारतीयता के विराट वैभव का प्रतीक हैं। डॉ रामनवल ने तुलसी को भारतीय संस्कृति के सामंजस्य का कवि कहा। परिचर्चा में तुलसी की कृतियों की महत्ता पर चर्चा कर उन्हें भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधि कवि बताया गया। परिचर्चा में यज्ञेश त्रिपाठी , नेबुलाल, अमित, नीरज मिश्र आदि उपस्थित रहे।

Topics: कसया मल्लूडीह

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