Reported By: Ved Prakash Mishra
Published on: Apr 25, 2021 | 12:39 PM
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हाटा/कुशीनगर | किसी के लिए आसमान से चांद- तारे तोड़कर लाना असम्भव हो सकता है लेकिन चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के लिये यह आसान काम है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण समपन्न होने वाला पंचायत चुनाव है, जिसमें प्रत्याशियों ने वोट के लिए वादों का पिटारा खोल दिया है।
इस चुनाव में अधिकतर गाँवों में अजीब नजारा दिखाई दे रहा है। वोट के लिये कुछ भी करेगा कहावत को चरितार्थ करने वाले प्रधान पद के प्रत्याशी जन्म से लेकर मृत्युभोज तक में परिजनों से ज्यादा भूमिका निभा रहे हैं। कभी भूलकर भी किसी मतदाता की तरफ तिरछी नजरों से भी नहीं देखने वाले प्रत्याशी मतदाता के मिलते ही चरणस्पर्श कर उनका आशीर्वाद मांग रहे हैं। इतना ही नहीं ये गांव के हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदाय के मतदाताओं को आकर्षित करने के लिये प्रलोभन देने के साथ ही अलग-अलग वादे कर रहे हैं। हिन्दुओं के लिए प्रत्येक वर्ष छठ घाट की सफाई व रंगाई-पुताई के साथ पूरी रात प्रकाश की व्यवस्था करना, किसी भी परिवार के सदस्य के बीमार होने पर अपने खर्च से अस्पताल पहुंचाने व इलाज कराने, हिन्दू-मुस्लिम परिवार के प्रत्येक लड़की की शादी में सहायता देना, पात्र व्यक्तियों को पेंशन व आवास दिलाना, मनरेगा कार्ड बनवा कर उन्हें पूरे साल काम दिलवाना, ग्राम सभा के हर मोहल्ले में खड़ंजा कराने तथा नाली बनवा कर जल निकासी की समस्या समाप्त कराना, अगर गांव में मन्दिर है तो हर दो साल पर यज्ञ तथा मुस्लिमों के लिए हर साल तकरीर कराना, मृतकों के लिए गांव में श्मशान बनवाना, मुस्लिमों के कब्रिस्तान में जलपम्प की व्यवस्था करना, विवाद को पुलिस के बजाय गांव में ही सुलझा देना, जीर्ण-शीर्ण कुओं की मरम्मत कराना, पुराने खड़ंजा को नया स्वरूप दिलाना, विद्युत विहीन घरों में बिजली कनेक्शन दिलाना तथा बेरोजगार युवकों को रोजगार दिलाने जैसे तमाम कभी पूरा नहीं होने वाले वादे कर रहे हैं। मतों का गुणा-गणित लगाने में माहिर प्रत्याशी मतों को अपने पक्ष में सुरक्षित करने के लिए शतरंज की गोटियां बिठाने में मशगूल हैं। उनकी नजर एक-एक वोट पर गिद्ध की तरह जमी हुयी है तथा बाहर कमाने गये मजदूरों व शहरों में पढ़ने वाले छात्रों को अपने खर्चों से चुनाव पूर्व घर बुला रहे हैं। जिस ग्रामीण के घर शादी-विवाह, मुंडन व धार्मिक कार्यक्रम हैं, उसके घर सुबह-शाम पहुंचकर उनकी हर सम्भव मदद का आश्वासन दे रहे हैं।
जहां तक मतदाताओं की बात है तो वह किसी भी प्रत्याशी को नाराज नहीं करना चाहता और सभी को जीत का आशीर्वाद दे रहा है। वैसे प्रधान पद के लिए क्षेत्र के अधिकतर गांवों में निवर्तमान प्रधानों से ही मुकाबला होता दिख रहा है। चुनाव में दारू और रुपया लेकर वोट देना एक सामाजिक बुराई बन गयी है। दारू तो लगभग अधिकतर प्रत्याशियों द्वारा बाँटा जा रहा है, जबकि मत देते समय बिकाऊ मतदाताओं को नकद देकर वोट लेने की व्यवस्था भी अभी से की जा रही है। इस चुनाव में जहाँ अनुभवहीन प्रत्याशियों द्वारा कभी भी पूरा नहीं होने वाले तमाम वादे किए जा रहे हैं, वहीं घाघ प्रत्याशियों द्वारा एक-एक मत को अपने पक्ष में करने का शतरंजी जाल बिछाया जा रहा है।
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