Reported By: Surendra nath Dwivedi
Published on: Dec 5, 2020 | 6:53 PM
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मौजूदा दौर में लोगों के बीच महामारी का भय जोरों पर है। सभी को चिंता सता रही है कि कब कैसी-कैसी परिस्थितियों से गुजरना पड़ सकता है। इस कारण लोग बेहाल है। कोरोना के अतिरिक्त डेंगू, चिकुनगुनिया और वैसी अन्य मौसमों के मुताबिक उत्पन्न होने बीमारियों की भी कमी नहीं है। इन बीमारियों से जूझने के लिए दवाइयां जरूरी हैं, लेकिन दवाइयों की बढ़ती दरों ने लोगों को जीते-जी मारने की स्थिति पैदा कर दी है।महंगी दवाइयों ने लोगों के सामने यह सोचने की स्थिति पैदा कर दी है कि अब वह कितने दिन के मेहमान हैं! ऐसा सोचना स्वाभाविक है, क्योंकि अब उनके पास संसाधनों का अभाव होता चला जा रहा है, जिससे वे अपने अमूल्य जीवन को खरीद सकते।यहां भाव यह है कि जीवन रक्षक दवाइयों के उत्पादन और लागत मूल्य से कई गुणा अधिक मूल्य वसूले जा रहे हैं, जिसने लोगों के जीवन दुश्वार बना दिया है। इस होड़ में शामिल बड़ी-बड़ी रसूखदार कंपनियों ने पैसे के बल पर डर दिखा कर या अन्य विधियों से डॉक्टरों पर अपना कब्जा जमा कर अपना कारोबार फैलाती हैं। जो डॉक्टर ऐसी कंपनियों से अनुगृहित होते हैं, वे उनके अनुरूप ही अपनी कलम चलाते हैं।बाजार में वैसे ही गलाकाट प्रतियोगिताएं चल रही हैं, जहां कोई हारने के लिए तैयार नहीं है। इस स्थिति में जनमानस के लिए तैयार की जा रही जेनेरिक दवाइयां उन तक कैसे पहुंचेगी और उन्हें कौन खरीदेगा? जबकि जेनेरिक दवाइयां काफी सस्ती होती हैं और गुणवत्ता भी बराबर।
फिर यह बाजार में सहज उपलब्ध क्यों नहीं होतीं? इसका कारण यह है कि जेनेरिक दवाओं के अच्छे-बुरे के बारे में लोगों में भ्रम फैला कर इन दवाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न-चिह्न लगाया जा रहा है। बड़ी-बडी कंपनियों के द्वारा अपने पैसे एवं रसूख के बल पर जेनेरिक उत्पादों को बाजारों में आने के पहले उखाड़ फेंकने का षड्यंत्र किया जाता है।
दरअसल, बड़ी कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को बड़ी-बडी और मोटी रकम गिफ्ट के रूप या नजराने के रूप में दिए जाते हैं। इस पर कई बार सवाल उठ चुके हैं। दूसरी ओर, जेनेरिक कंपनियां इस भीषण कारोबारी युद्ध में लड़ने की स्थिति में नहीं हैं।
ऐसी स्थिति में जनमानस को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है? इसके लिए सरकार को छोटे-छोटे जेनेरिक दवाओं के विनिमार्ता कंपनियों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है, ताकि वे अपने उत्पादों को प्राइवेट व सरकारी अस्पतालों में खपत करा सकें।
बाजारों में एक मजबूत तंत्र के तहत बड़ी-बड़ी कंपनियों के उत्पाद और जेनेरिक कंपनियों के उत्पाद पर मूल्य नियंत्रण का आधार बने। मूल्यों में भारी अंतर उत्पादों की विश्वसनीयता पर प्रश्न-चिह्न लगाता है। इस संदर्भ में लोगों को जागरूक करने की जरूरत भी एक महत्त्वपूर्ण हथियार है।डॉक्टरों को चेतावनी के साथ-साथ जनमानस के लिए अच्छी सोच के आधार पर डॉक्टरी करने का सख्त निर्देश भी इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। बस दृढ़ इच्छाशक्ति और ईमानदारी के साथ काम करने की जरूरत है।