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धर्म और जाति की समस्या के समाधान है कबीर : प्रो. अनिल राय

न्यूज अड्डा डेस्क

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Published on: Nov 10, 2024 | 7:39 PM
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धर्म और जाति की समस्या के समाधान है कबीर : प्रो. अनिल राय
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सलेमगढ़। रविवार को इन्द्रदेव राय मेमोरियल महिला महाविद्यालय के सभागार में ‘दिनकर’ शब्द-संवाद मंच के तत्वावधान में “कबीर की मानवीय दृष्टि” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आरम्भ दीप प्रज्जवलन, सरस्वती वंदना के पाठ एवं महाविद्यालय गीत की प्रस्तुति के साथ हुआ। मंच के अध्यक्ष एवं महाविद्यालय के संस्थापक डॉ. हर्षवर्द्धन राय ने अपने वक्तव्य में मानवीयता के वर्तमान एवं भविष्य में प्रसांगिकता को रेखांकित करते हुए कहा कि इस वैज्ञानिक क्रांति के दौर में यदि मानवता को छोड़ कर समाज आगे बढे तो निर्माण के स्थान पर विध्वंस ही प्राप्त होगा, ऐसे में कबीर के विचार आवश्यक होंगे। मंच के सचिव एवं पूर्व प्राचार्य डॉ. उमाकान्त राय ने मंच का परिचय देते हुए पूर्व में मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की चर्चा की।मंच के संरक्षक एवं पूर्व प्राचार्य डॉ. वेद प्रकाश पाण्डेय ने जातिधर्म की आडंबरों पर प्रहार करने वाले बुद्ध, गोरखनाथ और कबीर को समावेशी समाज सुधारक के रूप में व्याख्यित किया।

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विशिष्ट अतिथि, गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के आचार्य प्रो. अनिल राय ने अपने उद्बोधन में बताया कि कबीर के पास विज्ञानं और समाजशास्त्र के आधुनिक सिद्धांत नहीं थे, लेकिन फिर भी उनका विश्लेषण सटीक है और उनके शब्द और कर्म के एकरूपता है और वे सबको एक सामान देखते है और आज की मानवता के सामने धर्म और जाति के आधार पर जो सामाजिक विभाजन है, उसका समाधान कबीर का दिखाया मार्ग ही है। विशिष्ट अतिथि एवं पूर्वाचल विश्वविद्यालय जौनपुर के पूर्व अधिष्ठाता डॉ. आद्या प्रसाद द्विवेदी ने बताया कि विद्वानों ने उन्हें एक कवि और समाज सुधारक माना है तथा एक कवि के रूप में उन्होंने बिखरती मानवता को संजोने का कार्य किया है।

मुख्य अतिथि एवं पूर्व प्रति कुलपति अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने कबीर के विचारों को ही मानस की पृष्ठभूमि बताई, उन्होंने कहा कि मानस में राम के अवतार होने के जो प्रश्न उठाये गए है उनकी भाषा कबीर की है और मानस इन्ही प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास है। कबीर का रास्ता अध्यात्म का रास्ता है एवं वह न्यायलय या राजा की नहीं बल्कि उस सर्वज्ञ सत्ता ‘साईं’ के सम्मुख सच्चा होने को कहते है। अध्यक्षीय उद्बोधन में गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य प्रो. रामदरश राय ने कबीर के अनपढ़ होने को मिथक बताया और कहा कि उन्हें सभी 52 वैदिक ध्वनियों की जानकारी थी और उन्होंने उसमे ‘र’ और ‘म’ को श्रेष्ठ माना है। कार्यक्रम के अंत में अंगवस्त्रम एवं स्मृतिचिन्ह देकर अतिथियों को आभार ज्ञापित करते हुए महाविधायलय के प्राचार्य जितेंद्र कुमार मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का सञ्चालन पी के महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ विवेक पाण्डेय ने किया। इस दौरान मोतिहारी के सूचना एवं जनसपर्क अधिकारी ज्ञानेश्वर प्रकाश, पूर्व प्रधानाचार्य एकबाली राय, पूर्व प्रधानाचार्य जितेंद्र पाण्डेय, महाविद्यालय के सभी स्टाफ एवं अन्य गणमान्य लोग उपास्थि रहे।

Topics: तरयासुजान सलेमगढ़

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