News Addaa WhatsApp Group link Banner

कथा का रसपान कर भाव विभोर हुए श्रोता

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय

Reported By:
Published on: Feb 14, 2025 | 4:16 PM
97 लोगों ने इस खबर को पढ़ा.

कथा का रसपान कर भाव विभोर हुए श्रोता
News Addaa WhatsApp Group Link

अहिरौली बाजार/कुशीनगर।कप्तानगंज विकास खण्ड क्षेत्र अंतर्गत स्थित पकड़ी में चल रहे सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक राधेश्याम शास्त्री ने अपने कथा का रसपान कराते हुए श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया। उन्होंने कथा के माध्यम से बताया कि जब भक्त भगवान को मिलता है तो जितनी पुलक और आनन्द भक्त में घटती है तो उससे अनंत गुना पुलक और आनन्द भगवान में घटती है। घटनी ही चाहिए क्योंकि अनंत गुना है भगवान भक्त से।भक्त तो एक बूंद है, भगवान तो एक सागर है।अगर बूंद इतनी नाचती है, तो तुम सोचो,सागर कितना नाचता होगा!

आज की हॉट खबर- खड्डा: आईपीएल चीनी मिल ने 121 दिनों में 24.83 लाख...

लेकिन वह कोई व्यक्ति नहीं है।यह सारी समष्टि वही है।इसलिए वह सब रूपों में नाचता है,सब रूपों में हंसता है,सब रूपों में पुलकित होता है। हरियाली में और हरा हो जाता है।रंग में और रंगीन हो जाता है। इंद्रधनुष में और गहरा हो जाता है।लेकिन वह दिखाई पड़ता है उसी को,जिसके हृदय में अहोभाव भरा है,जो नाच रहा है आज।उसे परमात्मा साथ ही नाचता हुआ दिखाई पड़ता है।यही तो अर्थ है कि सोलह हजार गोपियां नाचती हैं और प्रत्येक गोपी को लगता है कृष्ण उसके साथ नाच रहे हैं।कृष्ण अगर व्यक्ति हों,तो एक ही गोपी के साथ नाच सकते।कृष्ण कोई व्यक्ति नहीं हैं।कृष्ण तो एक तत्व का नाम है। वह तत्व सर्वव्यापी है। जब तुम नाचते हो और तुम नाचने की क्षमता जुटा लेते हो, तब तुम अचानक पाते हो कि सारा अस्तित्व तुम्हारे साथ नाच रहा है।फिर अस्तित्व बहुत बड़ा है,वह दूसरों के साथ भी नाच रहा है।

इसलिए भक्त को कोई ईर्ष्या पैदा नहीं होती। अन्यथा तुम सोच सकते हो कि सोलह हजार स्त्रियों ने क्या गति कर दी होती कृष्ण की!अगर यह बात साधारण संसार की बात हो, जैसा कि इतिहासविद मानते हैं।पश्चिम की सारी शिक्षा है रजस की,दौड़ो, पाओ घर बैठे कुछ न मिलेगा करना पड़ेगा। वे दौड़ने में इतने कुशल हो गए हैं कि जब उन्हें मंजिल भी मिल जाती है,तो रुक नहीं पाते तब वे आगे की मंजिल बना लेते हैं।वे दौडते ही रहते हैं।

पूरब सो रहा है पश्चिम भाग रहा है।तामसी सोता है राजसी भागता है।दोनों चूक जाते हैं।सोया हुआ इसलिए चूक जाता है कि वह मंजिल तक चलता ही नहीं है।

और भागने वाला इसलिए चूक जाता है कि कई बार मंजिल पास आती है,लेकिन वह रुक नहीं सकता। वह जानता ही नहीं कि रुके कैसे।एक जानता नहीं कि चले कैसे, एक जानता नहीं कि रुके कैसे।सत्य का अर्थ है, संतुलन।

सत्य का अर्थ है, जानना कब चलें, जानना कब रुके। जानना कि कब जीवन में गति हो,और जानना कि कब जीवन में विश्राम हो।जिसने ठीक—ठीक विश्राम जाना और ठीक—ठीक कर्म जाना, वह सत्व को उपलब्ध हो जाता है, सम्यकत्व को उपलब्ध हो जाता है।

सम्यक गति और सम्यक विश्राम,ठीक—ठीक जितना जरूरी है,बस उतना उससे रत्तीभर ज्यादा नहीं। इस ठीक की पहचान का नाम ही विवेक है।
और तुम अपने भीतर जांच करना,अक्सर तुम पाओगे,अति है। या तो एक अति होती है,नहीं तो दूसरी अति होती है। निरति चाहिए अति से मुक्ति चाहिए। श्रम भी करो, विश्राम भी करो।दिन श्रम के लिए है,रात्रि विश्राम के लिए है।और दोनों के बीच अगर एक सामंजस्य सध गया, तो तुम पाओगे तुम न दिन हो और न तुम रात हो; तुम तो दोनों का चैतन्य हो, दोनों का साक्षी— भाव हो। वही सत्य में अनुभव होगा।

Topics: अहिरौली बाजार

आपका वोट

View Result

यह सर्वे सम्पन हो चूका है!

सर्दियों में सबसे मुश्किल काम क्या है?
News Addaa Logo

© All Rights Reserved by News Addaa 2020