Reported By: न्यूज अड्डा डेस्क
Published on: Apr 3, 2023 | 7:41 PM
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कसया/कुशीनगर। रहमतों व बरकतो वाला रमजान का पहला अशरा समाप्त होकर दुआओं व मगफिरत का दूसरा अशरा शुरू हो गया है l बताया जाता है कि रमजान के दूसरे अशरे में ईमान वालों को फरमान है कि इन दिनों में आप ज्यादा से ज्यादा इबादत कर ख़ुदा से दुआ कर अपनी हर गुनाहो की तौबा करने पर उसकी हर गुनाह माफ की जाती है, और सभी दुआ कबूल होती है l साथ ही हर बंदा अपनी इबादत व दुआओं के बल पर ख़ुदा को ख़ुश कर मगफिरत करवाता है l इसी लिए रमजान के महीने को नेकी को अपनाने और बदी को ठुकराने का पाक व बरकत वाला महीना भी कहा गया हैl
रोजा रखना मतलब भूखा रहना नहीं है, बल्कि उस इंसान को अपने जिस्मानी और रूहानी इरादों व सब पर नियंत्रण रख नेक इरादे और सच्चे मन से बिना खाये पिए यानि सुबह सेहरी से लेकर शाम अफ्तार तक रहना है, साथ ही इबादत भी पूरी शिद्दत के साथ करें l रोजे रखने के दौरान रोजेदार अपने दिल दिमाग़, हाथ, पैर, आंख, कान,मुँह यानि जिस्म के हर एक भाग को नियंत्रण रखते हुए रोजा रखे और अल्लाह की इबादत करें ,तभी रोजा मुकम्मल तरीके से पूरा होगा l रमजान महीने के महत्त्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि इस महीने मे ही पवित्र कुरान पाक नाजिल हुआ l कुरान मे इंसानी जिंदगी जीने से लेकर, खान- पान,रहन -सहन, हलाल -हराम, हर उन चीजों को बताया गया है, जो दुनिया मे आने के बाद एक नेक और सच्चा इंसान बन सकता है l रमजान के रोजे को शिद्दत के साथ रहने पर कुरान व हदीश में फ़रमाया गया है कि “रोजे से इंसान की रूह और इरादे को ताकत मिलती है” l ये भी जिक्र है कि रमजान में महीने भर शैतान को अल्लाह कैद कर देता है ताकि ईमान वालों को रमजान में शैतान परेशान न कर सके तथा हर ईमान वाला मुसलमान पुरे रमजान भर इबादत कर रहमत व बरकत कमा ले और अपनी गुनाहो का मगफिरत करा ले l
इसलिए यह कहा गया है कि रोजे से तकवे को शिफ़त मिलती है l रोजा इंसान को जिस्मानी और रूहानी गन्दगिया साफ करने का भी जरिया है l रोजा इंसान को जन्नत मे जाने और जहन्नम से बचाने का भी उपाय है lरमजान के पवित्र महीने को तीन अहम् अशरो ( हिस्सों) मे बाँटा गया है l हर एक हिस्सा दस दिनों का होता है l रमजान के इन तीनो अशरो का इबादत के हिसाब से शबाब, रहमतो व बरकतो का खूब मर्तबा व इनाम है l कुरान और हदीश के अनुसार रमजान का पहला अशरा रहमतों और बरकतो वाला होता है, इस अशरे मे रोजा रहने वालों के रहमतों की बारिश होती है, तो वही उनके घर और जिंदगी मे बरकत ही बरकत होती है l दूसरे अशरे मे इंसान की दुआ कबूल होती है और गुनाहो को अल्लाह मगफिरत फरमाता है l रमजान का तीसरा अशरा इंसान को जहन्नुम से निजात दिलाता है l इस तरह रमजानुल मुबारक का हर अशरा इंसानी जिंदगी और रूहानी जिंदगी के लिये बहुत बड़ा मर्तबा रखता है l इंसान इस महीने मे जितनी नेकिया कमाना चाहे कमा लें क्यों की यह महीना खैर व बरकत वाला महीना है l रमजान का रोजा रखना हर मुसलमान मर्द औरत पर फ़र्ज है l जो शख्स सेहत और तंदुरुस्ती के बावजूद बिना किसी मज़बूरी के रमजान का रोजा नहीं रखता या छोड़ देता है वह चाहे बिना रमजान के रोजे पूरी जिंदगी भर रोजा रहे वह रमजान के रोजे के बराबर नहीं हो सकता l कुरान मे अल्लाह ने फ़रमाया है की ईमानवालों पर रोजा फ़र्ज किया गया है l और इससे पहले भी अन्य उम्मतियों पर भी रोजा फ़र्ज रहा है l नबी ऐ करीम सल्लाहों अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया है की मेदा हर बीमारी का मरकज है और परहेज हर बीमारी का शिफा है l रोजा रखने से सेहत बनती है और जिस्म की जकात रोजा है l रोजा गुनाहो के बख्सिश का जरिया है l हर मुस्लमान मर्द व औरत पर रोजा फ़र्ज है l
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