Reported By: न्यूज अड्डा डेस्क
Published on: May 8, 2022 | 8:56 PM
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कसया/कुशीनगर । औषधीय गुणो से भरपूर हल्दी की खेती से किसानों के लिए खुशीनगर जनपद में बरदान सिद्ध हुई है। हल्दी शुभ कार्य से लेकर सब्जियों, दाल आदि का जायका बढ़ाता है। हल्दी की खेती की बुआई का मई सही समय है। इसके अलावा जून माह के प्रथम सप्ताह में भी बोई जा सकती है।
उक्त बातें उत्तर प्रदेश गन्ना किसान संस्थान प्रशिक्षण केंद्र पिपराइच के सहायक निर्देशक ओमप्रकाश गुप्ता ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बतायी। केंद्रीय बागवानी संस्थान रहमान खेड़ा लखनऊ के बैज्ञानिक डॉ आलोक कुमार गुप्ता ने बताया कि हल्दी सौंदर्य निखारने के साथ औषधीय गुण का खजाना है। हल्दी की प्रति एकड़ 100 से 120 एकड़ पैदावार ली जा सकती है। हल्दी की नई किस्म राजेन्द्र सोनिया की उपज 160 कुंतल प्रति एकड़ तक है। श्री गुप्ता ने कहा कि हमने दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश के राज्यो का दौरा किया जहां के किसान गन्ना व हल्दी की सह फसली खेती से भारी लाभ कमा रहे हैं। पूर्वांचल में सबसे अधिक खेती कुशीनगर जिले के तमकुहीराज, पडरौना, खड्डा, तरयासुजान, दुदही में होती है। हल्दी की अच्छी खेती के लिए दोमट बलुई भूमि उत्तम है। जलजमाव न हो व जलनिकासी की व्यवस्था हो।
दो से तीन जूतायी के बाद 50 कुन्तल गोबर की सड़ी खाद डालकर जोताई करें और हल्दी के कुंद (बीज) को बावर्तिन की एक ग्राम प्रतिलीटर पानी के घोल में डुबाकर उपचारित कर ले। बुआई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी, नाली कि गहराई 5 सेमी हो। उर्वरक में एनपीके प्रति एकड़ 100 किग्रा 15 किलो पोटास के साथ प्रयोग कर मिट्टी मिला दें व उपचारित बीज 25 सेमी की दूरी पर रखकर मिट्टी से ढक दें। बुआई के 15 से 20 दिन में अंकुर निकल जाता है। निराई गुणाई व दो या तीन हल्की सिंचाई करनी चाहिए। फसल सात माह में पककर तैयार हो जाती है। जब पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगे तो समझ लेना चाहिए कि फसल तैयार हो गयी है। खेती के वक्त अच्छे बीज का चयन काफी महत्वपूर्ण होता है। गजेंद्र सोनिया, सवर्ण, सुगंधा, नरेंद्र हल्दी, एनडीएन 14, राजेन्द्र हल्दी 5 आदि प्रजातीय काफी लाभ देती हैं। और 200 से 220 दिन में तैयार होती है।
Topics: पड़रौना बिज़नेस और टेक्नोलॉजी