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तमकुहीराज: पार्वती शिव विवाह के उपरांत पुनः हुई थी शक्ति की स्थापना – दीदी स्मिता वत्स

न्यूज अड्डा डेस्क

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Published on: Mar 10, 2021 | 8:03 PM
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तमकुहीराज: पार्वती शिव विवाह के उपरांत पुनः हुई थी शक्ति की स्थापना – दीदी स्मिता वत्स
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  • शिव विवाह की कथा सुन भाव विभोर हुए श्रोता, करते रहे जयघोष

तमकुहीराज/कुशीनगर।माता सती को ही पार्वती, दुर्गा, काली, गौरी, उमा, जगदम्बा, गिरीजा, अम्बे, शेरांवाली, शैलपुत्री, पहाड़ावाली, चामुंडा, तुलजा, अम्बिका आदि नामों से जाना जाता है। इनकी कहानी बहुत ही रहस्यमय है। यह किसी एक जन्म की कहानी नहीं कई जन्मों और कई रूपों की कहानी है।
श्री अयोध्या धाम से आयी दीदी स्मिता वत्स ने ग्राम बलडीहा में आयोजित शिव ज्ञान महायज्ञ में पार्वती शिव विवाह की कथा सुनाते हुए कही। उन्होंने कहा कि दक्ष के बाद सती ने हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के यहां जन्म लिया। मैनावती और हिमवान को कोई कन्या नहीं थी तो उन्होंने आदिशक्ति की प्रार्थना की। आदिशक्ति माता सती ने उन्हें उनके यहां कन्या के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। दोनों ने उस कन्या का नाम रखा पार्वती। पार्वती अर्थात पर्वतों की रानी। इसी को गिरिजा, शैलपुत्री और पहाड़ों वाली रानी कहा जाता है, सती के शरीर त्याग के उपरांत विश्व शक्तिहीन हो गया। उस भयावह स्थिति से त्रस्त महात्माओं ने आदिशक्तिदेवी की आराधना की। तारक नामक दैत्य सबको परास्त कर त्रैलोक्य पर एकाधिकार जमा चुका था। ब्रह्मा ने उसे शक्ति भी दी थी और यह भी कहा था कि शिव के औरस पुत्र के हाथों मारा जाएगा।
शिव को शक्तिहीन और पत्नीहीन देखकर तारक आदि दैत्य प्रसन्न थे। देवतागण देवी की शरण में गए। देवी ने हिमालय (हिमवान) की एकांत साधना से प्रसन्न होकर देवताओं से कहा- ‘हिमवान के घर में मेरी शक्ति गौरी के रूप में जन्म लेगी। शिव उससे विवाह करके पुत्र को जन्म देंगे, जो तारक वध करेगा।’
भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने देवर्षि के कहने मां पार्वती वन में तपस्या करने चली गईं। भगवान शंकर ने पार्वती के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा। पार्वती के दृढ़ इच्छा को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने पार्वती को सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद दिया और वे पुन: शिवजी के पास वापस आ गए। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुनकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न हुए और समझ गए कि पार्वती को अभी में अपने सती रूप का स्मरण है।सप्तऋषियों ने शिवजी और पार्वती के विवाह का लग्न मुहूर्त आदि निश्चित कर दिया। विवाह के दिन शिव की बारात हिमवान के घर गयी। बावले वर के साथ भूत-प्रेतादि की वह बारात देखकर नगर में कोलाहल मच गया। मैना ने जब सुना तो वह बड़ी दु:खी हुई और हिमवान के समझाने – बुझाने पर किसी प्रकार शांत हुई। यह लीला कर लेने के बाद शिव अपने सुन्दर और भव्य रूप में परिवर्तित हो गये और गिरिजा के साथ धूम-धाम से उनका विवाह हुआ।
कथा का शुभारंभ मुख्य यजमान द्वारा व्यास पीठ का पूजन कर शुभारम्भ किया गया। इस दौरान जय प्रकाश पांडेय, ब्रजेश राय, केदार नाथ शाही, गौरीशंकर तुलस्यान, विजय शाही, मनोज शाही, बाबूराम वर्मा, शम्भू शरण पांडेय, अनिल राय, कन्हैया दुबे के अलावे काफी संख्या में महिलाएं एवं पुरुष धर्मानुरागी उपस्थित रहे।

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Topics: तमकुहीराज

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