Reported By: Surendra nath Dwivedi
Published on: Mar 10, 2021 | 6:59 PM
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तमकुहीराज/कुशीनगर । पूरे दुनिया के कौए गंदगी में वास करते हैं परन्तु कागभुशुण्डी जी ने भगवान के जन्म के उपरान्त संकल्प किया कि जब तक भगवान पाँच वर्ष के नहीं हो जाएंगे तब तक सब कुछ त्याग , मै अवध में ही वास करुंगा तथा राजा दशरथ के महल की मुंडेरी पर बैठ भगवान की बाल लीलाओं के दर्शन कर जीवन धन्य करुंगा ।
उत्तरप्रदेश- बिहार सीमा पर स्थित सलेमगढ़ कस्बा में श्रीराम कथा समिति द्वारा आयोजित श्रीराम कथा की अमृत वर्षा कराते हुये ब्यास गद्दी पर विराजमान प्रख्यात श्रीराम कथा वाचक श्री अतुल जी महाराज ने पंडाल में बैठे राम भक्तों से अपने ब्याख्यान मे कहा की सूरदास जी का प्रचलित भजन ” जन – जन की जिह्वा पर आज भी अंकित है ।” खेलत खात फिरै अंगना , पगु पैजनिया अरु पीली कछोटी । काग के भाग कहा कहिए . हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी ।। ” कागभुशुडी जी ने संकल्प लिया था कि भगवान के हाथ का जो झूठन गिरेगा वही प्रसाद ग्रहण करुंगा । कथा व्यास जी ने कहा कि कागभुशुण्डी जी कोई सामान्य कौवा नहीं थे । उनकी दक्षता का वर्णन करते हुए उन्होने बताया कि भगवान भोलेनाथ जी भी कागभुशुण्टीजी से श्रीराम कथा सुनने स्वयं जाया करते थे । नामकरण की व्याख्या करते हुए उन्होने कहा कि यह ” नाम ” ही मनुष्य का भाग्य , भविष्य तय करता है । प्रभु श्रीराम का नाम लेने मात्र से ही मनुष्य धन्य हो जाता है । उन्होने कहा की हमारे समाज में जो बुराईयाँ व्याप्त है उनका कारण शिक्षा का अभाव ही है , आज जो भारत में शिक्षा दी जा रही है वह संस्कृति अनुरूप नहीं है । हमारी संस्कृति में शिक्षा धर्म से जोड़ने वाली , त्यागमयी जीवन जीने वाली , व दूसरों का हित करने वाली शिक्षा होती थी । बचपन का संस्कार व्यक्ति निर्माण में सहायक होता है । हमारे शास्त्रों में ग्रह नक्षत्र के आधार पर ही नामकरण करने की व्यवस्था थी । व्यास जी ने कहा हिन्दू धर्म में 16 संस्कार बताये गये हैं , इनमें नामकरण संस्कार भी है , यही संस्कार किसी भी बालक के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं । नाम ही मनुष्य का भाग्य भविष्य तय करता है । पूज्य व्यास जी ने कहा कि नाम भी राशि और ग्रह नक्षत्र के आधार पर होना चाहिए ।
” जो आनन्द सिंधु सुख राशि सिकर त्रैलोक सुपासी । सो सुखधाम असनामा , अखिल लोकदायक विश्रामा ।। “
व्यासजी द्वारा ” जाके सुमरन ते रिपुनाशा , नाम शत्रुधन वेद प्रकाशा ” इस चौपाई के उच्चारण मात्र से ही हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है ।
आगे की कथा व्यास जी अपने व्याख्या में बताये कि जब ऋषि विश्वामित्र गुरूकुल एवं यज्ञों की रक्षा हेतु राजा दशरथ से श्रीराम एवं श्री लक्ष्मण जी को लेकर अपने आश्रम आये उस बीच ताड़का / मारिच सुबाहु का वध श्रीराम के हाथों हुआ , तत्पश्चात् विश्वामित्र सीता स्वयंवर का समाचार पाकर मिथिला की ओर दोनों भाईयों के साथ चले , रास्ते में गौतम ऋषि के श्राप द्वारा शिला रूपी अहिल्या का उद्धार हुआ , अहिल्या उद्घार का वर्णन पूज्य व्यास जी ने अति मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किये और कहे कि मनुष्य के जीवन में कभी न कभी भूलवश कोई न कोई गलत कार्य हो जाता है जिससे मुक्ति पाना , प्रायश्चित करना ही एकमात्र साधन है । पुरूष या नारि को अपने पाप को छिपाना नहीं चाहिए उसे संत , गुरू . श्रेष्ठजन के सामने व्यक्त करना चाहिए । अगर कही क्षमा याचना नहीं कर सकते तो अपने इष्टदेव मंदिर में ( पूजा स्थल पर भगवान के सामने ) क्षमा मांगने का एहसास करना चाहिए क्योंकि पाप छिपाने से बढता है व पुण्य बताने से घटता है । भगवान श्रीराम के दर्शन मात्र से इन्द्र एवं गौतम ऋषि के श्राप से शीला रूपी अहिल्या का उद्धार हो गया।
वहीं उक्त कार्यक्रम के मुख्य यजमान पड़रौना के विख्यात समाजसेवी दीप नारायण अग्रवाल, पप्पू पाण्डेय, सुरेन्द्र गुप्त रहे ।इस दौरान प्रमुख रुप से देशबन्धु कश्यप, शिवजी गुप्ता, उग्रशेन राय, समाजसेवी नारायण गुप्त,मुरारी पटेल, राजू रौनियार, राजेश रौनियार, ओमप्रकाश सिंह,विकाश ठाकुर,जिला पंचायत सदस्य प्रेमचन्द यादव, ठाकुर जी, अजीत जयसवाल,पंकज गुप्ता, मिडिया प्रभारी राकेश खरवार पत्रकार उमेश चौरसिया, भाजपा के वरिष्ठ नेता दिवाकर पाण्डेय सहित आदि श्रदालु उपस्थित रहे।