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पाली:भारत की शास्त्रीय भाषा और बुद्ध की विरासत” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी हुआ आयोजित

राज पाठक

Reported By:
Published on: Dec 18, 2024 | 5:40 PM
85 लोगों ने इस खबर को पढ़ा.

भारत की शास्त्रीय भाषा और बुद्ध की विरासत” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी हुआ आयोजित
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कसया। भारत सरकार द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार और पालि को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देना भगवान बुद्ध को सच्ची श्रद्धांजलि है। भारतीय भाषाओं का स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता आज की जरूरत है। पालि का सम्मान और इसका नए सिरे से अध्ययन इसी की ओर आगे बढ़ने का प्रयास है। भगवान बुद्ध की भाषा पालि थी इसका उद्धार बुद्ध से और भी ज्यादा जोड़ेगा।

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उक्त बातें बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर में आयोजित “पाली: भारत की शास्त्रीय भाषा और बुद्ध की विरासत” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ अनिर्बान गांगुली ने कही। उन्होंने कहा कि सारनाथ , बोध गया , शांतिनिकेतन और लेह के बाद आज इस विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई है। उन्होंने 24 नवंबर 1956 में सारनाथ में बाबासाहब भीम राव अंबेडकर द्वारा दिए गए व्याख्यान का उल्लेख करते हुए कहा कि पालि भाषा और नालंदा के विश्वविद्यालय को समाप्त करने का काम मुस्लिम शासकों ने किया। आनंद कौशलायन के कथन को बताते हुए उन्होंने कहा कि पालि भाषा और साहित्य आधुनिक भारतीय भाषाओं को ही नहीं, वर्मा और म्यांमार की भाषा को प्रभावित करती है। पालि भाषा और साहित्य के लिए जीवन अर्पण करने वाले राहुल सांकृत्यायन महापंडित और त्रिपिटकाचार्य दोनों एक साथ कहे जाते है।

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के अध्यक्ष भंते महेंद्र ने कहा कि भारत सरकार द्वारा पालि भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देकर बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया गया है। यह पालि और बौद्ध धर्म को समझने में मदद करेगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भदंत ज्ञानेश्वर ने कहा कि पालि भाषा के व्यापक अध्ययन से भारतीय संस्कृति को व्यापक रूप से समझने में मदद मिलेगी। उन्होंने महाविद्यालय में अगले सत्र से पालि के अध्ययन की बात की।

पूर्व आईपीएस श्री संजय कुमार ने भाषा को शास्त्रीय भाषा की मान्यता मिलने के पीछे निहित छः तत्त्वों पर प्रकाश डालते हुए सम्राट अशोक के अभिलेखों की चर्चा की। श्री वीरेंद्र तिवारी ने बौद्ध धर्म की ऐतिहासिकता की चर्चा करते हुए उसकी प्राचीनता, मर्म और महत्व से सभा का परिचय कराया। विशिष्ट वक्ता शिवानंद द्विवेदी ने संगोष्ठिकी की वैचारिकी पर प्रकाश डाला। प्रो० वीरेंद्र कुमार ने बौद्ध धर्म और दर्शन को नए चश्मे से देखने की बात की। प्रो० गौरव तिवारी ने भाषा के रूप में पालि के विविधता की चर्चा की। आर्या धम्म नैना ने भी संबोधित किया।कार्यक्रम का संयोजन और संचालन पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर अमृतांशु शुक्ल ने किया। धन्यवाद ज्ञापन भावेश पांडे ने किया।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से समाज सेवी राकेश जायसवाल, सतीश मणि, अनिल राव, प्रोफेसर रामभूषण मिश्र, प्रो राघवेंद्र मिश्र, प्रो रवि पाण्डेय, प्रो इंद्रासन प्रसाद, प्रो वीरेंद्र कुमार, प्रो सीमा त्रिपाठी, डॉ रीना मालवीय, डॉ वीरेंद्र साहू, प्रो राजेश सिंह, डॉ निगम मौर्य, डॉ कृष्ण कुमार जायसवाल, डॉ सौरभ द्विवेदी, डॉ चंद्रशेखर सिंह, डॉ बीना कुमारी, प्रो ज्ञान प्रकाश मंगलम, डॉ राकेश चतुर्वेदी, डॉ सी पी सिंह, डॉ सुरेंद्र चौहान, डॉ धीरज सिंह, डॉ शिव कुमार, डॉ पंकज दुबे, डॉ यज्ञेश नाथ त्रिपाठी, डॉ सुबोध गौतम, डॉ विवेक श्रीवास्तव, डॉ राकेश सोनकर सहित विद्यार्थी और कर्मचारी उपस्थित थे।

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