Reported By: न्यूज अड्डा डेस्क
Published on: Jul 27, 2023 | 7:23 PM
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कसया, कुशीनगर। मोहर्रम का महीना इस्लामी कैलेंडर व इस्लामिक अरबी का नया वर्ष का पहला महीना है l इस्लामिक किताबों के मुताबिक इसी महीने में पैगम्बर मोहम्मद साहब भी खूब अल्लाह की इबादत करते थे तथा रोजे भी रखते थे l इस माह के 9वीं तारीख को इबादत करना अति महत्वपूर्ण बताया गया है l मोहर्रम की 9वीं तारीख का रोजा रखने का विशेष फायदा और महत्त्व है,इसके अलावा यह भी जिक्र है कि इसी दिन अल्लाह के नबी हजरत नूह(अ.)की किश्ती को किनारा मिला था l
ईस्लामिक तारीखी किताबों व कैलेंडर के मुताबिक 14 सौ साल पहले पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन के इसी माह के 10 वीं तारीख को इराक स्थित कर्बला में सत्य, न्याय व ईमान के लिये यजीद के अत्याचार व जुल्म के खिलाफ जंग हुई थी l यह जंग पैग़म्बर मोहम्मद साहब के वफ़ात (मृत्यु ) के 50वर्ष बाद मक्का से दूर यजीद ने अपने को खलीफा घोषित कर दिया,जो अब सीरिया देश के नाम से जाना जाता है l यजीद ने आवाम में अपना खौफ पैदा करने के लिये उनपर अत्याचार करना शुरू कर दिया तथा लोगो को गुलाम बनाने लगा l यजीद अपने बाहुबल व फ़ौज की ताकत के बल पर पुरे अरब पर कब्ज़ा कर अपना हुकूमत करना चाहता था l जब यजीद की यह बात पैगम्बरे इस्लाम मोहम्मद साहब के नवासे व वारिश इमाम हुसैन के पास आयी, तो इमाम हुसैन ने उसकी बात नही मानी और न ही उसके सामने घुटने टेके, जिसके बाद उनके बीच जमकर मुकाबला हुआ l इसी दरमियान अपने परिवार व साथियो को महफूज़ रखने के लिये इमाम हुसैन मदीना से इराक कुफा के लिये कूच कर रहे थे,कि रास्ते में ही तपती रेगिस्तान में कर्बला के पास यजीद व उसकी फ़ौज द्वारा उनको रोक दिया गया l वह दूसरी मोहर्रम का दिन था,जब तपती रेगिस्तान में उनके काफिले को रोका गयाl
हुसैन के काफिले को एसे जगह पर रोका गया, जहाँ पानी का एक मात्र स्रोत फरात नदी ही बस था l उस नदी पर यजीद ने पानी के लिये रोक लगा दी ,ताकि हुसैन यजीद के सामने झुक जाय और उसकी बात स्वीकार कर ले,पर लाख कोशिशो के बावजूद इमाम हुसैन ने यजीद के सामने झुके नही और आखिर में जंग का ऐलान हुआ,और उनपर हमला कर दिया गया l इस जंग में यजीद के पास 80हजार से अधिक सैनिक थे जबकि हुसैन के साथ मात्र 72 लोग थे, फ़िर भी हुसैन हिम्मत नही हारे और यजीद से मुकाबला जारी रखा l जंग में धीरे -धीरे इमाम हुसैन के सभी साथी शहीद हो गये, हुसैन अकेले जंग लड़ते रहेl यजीद के लिये हुसैन को हराना या मारना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन था l सिर्फ हुसैन ही बचे थे l यह जंग दो से छः दिनों तक चली l जंग के आखरी दिन हुसैन ने अपने शहीद साथियो को क़ब्र में दफ़न किया और मोहर्रम के 10वीं तारीख को जब इमाम हुसैन अस्र की नमाज अदा कर रहे थे, तभी मौका देख कर धोखे से हुसैन जब नमाज के सजदे में गये तो उनको शहीद कर दिया गया l
ऎसा कहा गया कि हुसैन जंग जीतने नही बल्कि न्याय, ईमान व हक के लिये कुर्बान होकर एक मिशाल कायम करने आये थेl जिनको आज पूरी दुनिया न्याय, हक व ईमान के लिये शहीद होने के रूप में जानती है तथा उन्हें याद करतें है l आज मोहर्रम के इस तारीख को कर्बला की जंग व इमाम हुसैन की न्याय, हक व ईमान के लिये शहीद हो जाने के रूप में मनाया जाता है l
इन दिनों में सुन्नी व शिया मुसलमानो द्वारा ताजिया प्रदर्शन, अखाड़ा, मातम सहित तमाम आडम्बरो को मनाया जाता है l जंग में प्यासो के तर्ज पर जगह -जगह पानी व शरबत पिलाया जाता है तथा 10वीं मोहर्रम को ताजिया दफ़न करने की परंपरा है l
Topics: अड्डा ब्रेकिंग