Reported By: न्यूज अड्डा डेस्क
Published on: Jun 20, 2022 | 12:39 PM
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आम की टहनियों में छेद करने वाला च्लुमेटिया ट्रांसवर्सा Chlumetia transversa यूटेलीडे परिवार का एक कीट है । इस प्रजाति का वर्णन सर्वप्रथम 1863 में फ्रांसिस वॉकर ने किया था।
इस कीट के लार्वा आम के पेड़ की नई शाखाओं में छेद कर देते हैं, जिसकी वजह से पत्तियां झड़ने व शाखाएं सूखने लगती हैं। इसकी मादा कीट नई पत्तियों पर अंडा देती हैं, अंडा फूटने पर लार्वा पत्तियों के मिडरिब के रास्ते मुख्य शाखा में प्रवेश कर जाता है और अग्रशिरा वाले भाग में छेद बनाकर सुखा देता है।
लार्वा काले सिर के साथ पारदर्शी पीला-हरा या भूरा होता है। यह नई टहनियों के नरम और कोमल ऊतकों पर भोजन करता है, और प्रेवश छिद्रों के पास प्रचुर मात्रा में मल छोड़ता है। पौधों के अवशेषों और मिट्टी के ऊपरी हिस्से में भूरे रंगे के कोषस्थ देखे जाते हैं। आम और लीची दोनों में इस कीट की वजह से भारी नुकसान होता हैं।
पौधों के विभिन्न हिस्सों पर होने वाले नुकसान मुख्य रूप से लार्वा के भोजन के कारण होते हैं। वयस्क पतंगे भूरे-काले और 8-10 मिमी लंबे होते हैं। लंबे-से एंटीना के साथ उनका शरीर भूरे रंग की कील की तरह होता है। उनके फैले हुए पंख लगभग 15 मिमी के होते हैं। अग्र पंख, भूरे रंग के विभन्न रंगों में छांयांकित पट्टियाँ के साथ और पंख के किनारे पर एक फीके धब्बे के साथ, भूरे रंग के होते हैं। पिछले पंख सादे भूरे होते हैं। मलाई जैसे सफ़ेद रंग के अंडे तने और नई टहनियों पर दिए जाते हैं। 3-7 दिनों के बाद, लार्वा निकलकर लगभग 8-10 दिनों तक भोजन करते हैं, और फिर कोषस्थ धारण करते हैं। वयस्क बनकर निकलने के बाद वे आसानी से दूसरे पेड़ों और बागीचों में उड़कर पहुँच जाते हैं। वर्षा एवं अत्यधिक आद्रता मैंगो शूट बोरर के विकास में मदद करती है, जबकि अपेक्षाकृत उच्च तापमान कीट के जीवन चक्र को रोकता है।
यह कीट भारत , पाकिस्तान , श्रीलंका , बांग्लादेश के भारत-ऑस्ट्रेलियाई उष्णकटिबंधीय देशों में चीन , कोरिया और इंडोनेशिया , मलेशिया , थाईलैंड , अंडमान द्वीप समूह , निकोबार द्वीप समूह और सोलोमन द्वीप समूह में प्रमुखता से पाया जाता है।
इस कीट का कैटरपिलर आम ( मैंगिफेरा इंडिका) का एक प्रमुख कीट है । यह युवा पत्तियों को खाता है और फिर मध्य शिरा और टर्मिनल शूट में छेद करता है। भारी प्रकोप के कारण पत्तियाँ फट जाती हैं और अंकुर मुरझा जाते हैं।
आम के इस प्रमुख कीट को लाइट ट्रैप, फेरोमोन ट्रैप, हैंड पिकिंग, प्रूनिंग या कई कीटनाशकों जैसे कार्बेरिल, क्विनालफोस, मोनोक्रोटोफोस, फेनवलक्रेट या साइपरमेथ्रिन के उपयोग से नियंत्रित किया जा सकता है। इस कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है की इस कीट से ग्रसित आम के हिस्से एवं टहनियों को काटकर नष्ट कर दें। कीट की उग्र अवस्था में रासायनिक कीटनाशक जैसे डायमथोएट(0.2%) या कार्बारील (0.2%) या क्यूनालफास (0.5%) का 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करके इस कीट को बहुत आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है।
Topics: बिज़नेस और टेक्नोलॉजी