Reported By: Ved Prakash Mishra
Published on: Dec 5, 2024 | 5:28 PM
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हाटा/कुशीनगर। भारत की ज्ञान परम्परा चरित्र के पहचान की रही है।यह सनातन है शाश्वत है।शास्त्र हमारे श्रुति की परम्परा है।
उक्त बातें स्थानीय श्रीनाथ संस्कृत महाविद्यालय के शताब्दी समारोह के उद्घाटन समारोह पर बतौर मुख्य अतिथि श्री राम बल्लभाकु़ज अयोध्या के ट्रस्टी राजकुमार दास जी ने कहीं। उन्होंने कहा कि हमारे वेद सदियों से हैं जो आज भी जीवित हैं। भारत की ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए समाज के सभी लोगों को पुरूषार्थ करने की जरूरत है जिससे भारत विश्व गुरु बनेगा।
विशिष्ट अतिथि प्रो चित्तरंजन मिश्र पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी डी डी यू गोरखपुर ने कहा कि संस्कृत भारतीय ज्ञान की भाषा है ।सदियों से चली आ रही भाषा का परिष्कृत स्वरूप में है आज की संस्कृत भाषा, भाषा वही अच्छी होती है जो समाज की जरूरत को पूरी करती है।जिस समाज में आदमी जंम लेते है वही उनकी भाषा है। संस्कृत हमारे ज्ञान परम्परा की अर्जित की हुई भाषा है। भारतीय समाज अपनी आवश्यकता की ही भाषा सृजन नही करती है हमारी जो ऋषि परंपरा है वह आवश्यकता के भी ऊपर है केवल भूख और भोग से ऊपर उठकर अपने ज्ञान परंपरा के समानांतर होते हैं
समारी ज्ञान परम्परा मूल्यों के अवगाहन की परंपरा है। ज्ञान के साधन की परम्परा है।हम ज्ञान की सार्थकता पर भी सवाल उठाने वाले लोग हैं। ज्ञान समारी संवेदना का सृजन करता है। हमारी ज्ञान परम्परा मनुष्यता को चरितार्थ करती है। रामायण और महाभारत दुनिया के बेजोड़ महाकाव्य है। आचरण की सार्थकता हमारी ज्ञान परम्परा का उद्देश्य है।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के प्रोफेसर संतोष कुमार शुक्ल ने भारतीय ज्ञान परम्परा विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा विश्व की सर्वाधिक पुरानी परम्परा है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सूर्यकांत त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा प्राण और प्रमाण पर विश्वास करता है।यह केवल अध्ययन की नहीं आचरण की परंपरा है। संस्कृत भाषा मात्र नहीं है यह नैतिक मूल्य है।
प्रयागराज विश्वविद्यालय के प्रो संत प्रकाश द्विवेदी ने कहा कि वैदिक ज्ञान परंपरा में अपार संभावनाएं हैं महाविद्यालय में वैदिक अध्ययन और अध्यापन से संस्कृत का निरंतर विकास प्रशंसनीय है।
संचालन अंबरीष कुमार मिश्रा ने किया।इस दौरान नगरपालिका अध्यक्ष रामानंद सिंह, सेवानिवृत डिप्टी एस पी शरद चंद पाण्डेय ने भी अपने भाव व्यक्त किया। अध्यक्षता कर रहे प्रो जयप्रकाश नारायण द्विवेदी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा गंगा के समान है।वेद वाणी हमारे ऋषियों की वाणी है जो सदियों से विभाग आयामों से परिवहन करते हुए हमारे पास आयी है। समाज के लोगों को एकजुट होकर इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है।
स्वागत के दौरान मंत्री महामहोपाध्याय आचार्य गंगेश्वर पाण्डेय ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। आभार प्रकट प्रबंधक अग्निवेश मणि ने किया। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ राजेश कुमार चतुर्वेदी व प्रबंधक, मंत्री ने अंग वस्त्र व स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया।इस दौरान संस्था के अध्यक्ष जयप्रकाश नारायण पाण्डेय, शिवप्रसाद शुक्ल,डॉ राम सुभाष पाण्डेय, सत्येन्द्र उपाध्याय, रामचंद्र पाण्डेय, शैलेन्द्र मिश्र, अनिल मणि, लालजी प्रसाद गोंड, , शैलेन्द्र असीम, कृष्ण कुमार श्रीवास्तव,ए हमीद आरज़ू, रामेंद्र मणि, सतीश चन्द्र शुक्ल, संजय पाण्डेय, संदीप पाण्डेय, डॉ बशिष्ठ द्विवेदी,
आदि उपस्थित रहे।
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