Reported By: Ved Prakash Mishra
Published on: Apr 29, 2024 | 4:37 PM
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हाटा/कुशीनगर। श्रीनाथ संस्कृत महाविद्यालय के शताब्दी वर्ष समारोह के क्रम में चौथे मास में कालिदास की कृतियों में लोक-मंगल की कामना विषय पर व्याख्यान माला का आयोजन किया गया।
मुख्य वक्ता डॉ लक्ष्मी मिश्रा समन्वयक संस्कृत पाली विभाग दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर ने अपने वक्तव्य में महाकवि कालिदास के ग्रंथों में उल्लिखित लोक मंगल के विचारों पर सारगर्भित व्याख्यान दिया। उन्होंने अभिज्ञान शाकुन्तलम् में एक राजा, तपस्वी एवं एक गृहस्थ के मनोभावों का अलंकारिक विवेचन किया। कहा कि कालिदास भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ उद्गाता हैं।
कहा कि एक तरफ जहां कवि एक राजा के कर्त्तव्य का रेखांकन करते हैं वहीं एक गृहस्थ को अपनी पुत्री को जीवन के आदर्शों को समझना एक महान चिंतक का आदर्श स्थापित करता है। ऋषि कण्व ने शकुन्तला को गृहस्थ जीवन और परिवार को संचालित करने का आदर्श ज्ञान दिया। राजपरिवार, वनवासी एवं गृहस्थ सभी की चिंता की गई है। वनस्पतियों की,जीव जंतुओं की देखभाल और प्रकृति संरक्षण को मानव जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया गया है जो लोक मंगल की भावना से ओत-प्रोत है। बीज वक्तव्य बुद्ध पीजी कॉलेज कुशीनगर में संस्कृत विभाग के प्रोफेसर डॉ सौरभ द्विवेदी ने दिया। उन्होंने कहा कि कालिदास ने अपने संपूर्ण काव्य में लोक-मंगल की कामना किया है।राजा का कर्तव्य, जनता का कर्तव्य, सामाजिक, दायित्वों का निर्वहन सभी बातों का समावेश कालिदास के साहित्य में किया गया है। उन्होंने राष्ट्र और विश्व शांति के लिए सुख और शांति के लिए समस्त साधनों को सन्निहित किया है। राष्ट्र धर्म का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कालिदास साहित्य में विद्यमान है।
मुख्य अतिथि डॉ सुधाकर तिवारी पूर्व प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय ने कालिदास साहित्य में लोक भाषा के द्वारा देश एवं समाज के हित की जो कामना की गई है उस पर विशेष चर्चा की।कहा कि साहित्य में जिस तरह प्रतीक का वर्णन कालिदास ने किया है उससे स्पष्ट होता है कि प्रतीकों का आम जीवन में उसके पूर्व भी प्रचलन था। उन्होंने महाकवि कालिदास ने लोक-मंगल को ही अपने साहित्य का आधार बनाया। अध्यक्षता कर रहे महाविद्यालय के मंत्री महामहोपाध्याय आचार्य गंगेश्वर पाण्डेय ने कालिदास साहित्य में प्रकृति,मानव एवं अन्य सभी जीव जंतुओं के मंगल की कामना की गई है। उन्होंने अभिज्ञान शाकुन्तलम्, मेघदूत, रघुवंश, आदि ग्रंथों की भी चर्चा की जिसमें तमाम प्रसंगों में लोक-मंगल के उदाहरण मौजूद हैं।
इस दौरान डॉ राजेश कुमार चतुर्वेदी,डा बशिष्ठ द्विवेदी, संजय पाण्डेय,रामश्रृषि द्विवेदी,कालिका दूबे,रीता पाण्डेय,पवन कुमार शुक्ल,सतीश चन्द्र शुक्ल, मोहन पाण्डेय,डा रामानुज द्विवेदी आदि उपस्थित रहे।
Topics: हाटा