Reported By: Ved Prakash Mishra
Published on: Nov 19, 2024 | 7:24 PM
182
लोगों ने इस खबर को पढ़ा.
हाटा/कुशीनगर। वैदिक ग्रंथ भारतीय संस्कृति वाहक है, उसके बिना सामाजिक सरोकारों की कल्पना नहीं की जा सकती है। सभी प्रकार की सहित्यिक संरच्ना का प्रभाव समताज पर होता है। वैदिक ग्रंथों में कुछ कठिनाइयों के चलते समाज इसे अपना नहीं पा रहा है। एेसी संगोष्ठियों को आयोजित कर इन कठिनाइयों को सरलता में परिवर्तित कर समाज को वैदिक संदेश देने में सफलता हासिल हो सकती है। उक्त बातें मंगलवार को महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन एवं श्रीनाथ संस्कृत महाविद्यालय हाटा कुशीनगर के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित त्रीदिवसीय अखिल भरतीय वैदिक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए दूसरे दिन सत्र को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के उपाध्यक्ष जगदीश पांडेय ने कही।
उन्होंने कहा कि वेद भारतीय संस्कृति का आधार है। यह संस्कृति सामाजिक सरोकारों को लेकर चलती है। वेदों में ज्ञान विज्ञान के गुढ़ रहस्य छुपे हुए हैं। जिसका ज्ञान प्राप्त कर हमें उसे निकालने की आवश्यक्ता है जिसे समाज को लाभ मिल सके। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डा. सतेंद्र यादव ने कहा कि वैदिक प्रचीन व्यवस्था के हिसाब से चला जाय तो वर्तमान की जो समस्याएं हैं वह समाप्त हो सकती हैं। डा. नीरज तिवारी ने भारतीय चिंतन परंपरा पर प्रकाश डालते हुए धनुर्वेद पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि इसमें शस्त्र व अस्त्र है। शस्त्रों को हाथों से चलाया जाता है जब कि अस्त्र को मंत्रों के द्वारा। गायत्री मंत्र के द्वारा अस्त्रों का संधान किया जाता है।
प्राफेसर सुशीम दूबे ने अपना व्याख्यान यजुर्वेद पर देते हुए कहा कि योग व योग्य शिक्षा अति आवश्यक है। ब्रम्ह साधना व सावित्री साधना के द्वारा हम शरीर को नियंत्रित कर सकते हैं। डा. पवन चतुर्वेदी ने कहा कि वेदों में पर्यावरण रक्षा के लिए विशेष उपाय बताए गये हैं वर्तमान समय में यदि इसे अपना लिया जाय तो पर्यावरण संरक्षण की समस्या से हम निपट सकते हैं। प्रोफेसर केसी चौरसिया ने कहा कि जो ब्रम्ह को समझ लेता है वह स्वयं ब्रम्ह हो जाता है। वैदिक साहित्य भारत का प्रचीन सहित्य है और योग पद्धति श्रेष्ठ विद्या मानी गई है। डा. श्रवण मणि त्रिपाठी ने कहा कि वेद का संरक्षण अति आवश्यक है। वेद में ज्ञान व यज्ञ की बात है। इसे लौकिक व पारलौकिक चीजें भी प्राप्त की जा सकती है। वैदिक व्यवस्था में यज्ञशाला ही प्रयोग शाला होती थी। डा. प्रदीप दीक्षित ने कहा कि ज्योतिष विद्या वेद का अंग है। ज्योतिष भूगोल गणित विज्ञान सहित अन्य विषयों को अपने में समाहित किया है। मानव जीवन से संबंधित जितने भी विंदु हैं उ से ज्योतिष विज्ञान से समझा जा सकता है। प्रोफसर अनिरूद्ध चौबे ने कहा कि संस्कृति की रक्षा वेद से ही संभव है। वेदों को अपनाने से वेदना दूर होगी।
संगोष्ठी में अभिषेक द्विवेदी, डा. कुलदीप शुक्ल, डा. सौरभ द्विवेदी, डा. प्रियेश तिवारी, डा. विकास शर्मा, डा. संदीप कुमार पांडेय, डा. वशिष्ठ द्विवेदी, डा. च्रद्रेश पांडेय ने भी अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए। आगन्तुकों का स्वागत प्रबंध समिति के मंत्री गंगेश्वर पांडेय ने किया। तथा आभार प्रबंधक अग्निवेश मणि ने ब्यक्त किया। संचालन डा. राजेश चतुर्वेदी व रामानुज द्विवेदी ने किया। अध्यक्षता प्रोफसर जयप्रकाश नारायण द्विवेदी ने किया।
Topics: हाटा