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वेद ज्ञान का भण्डार और चिन्तन है:कुलपति

Ved Prakash Mishra

Reported By:
Published on: Nov 20, 2024 | 7:37 PM
174 लोगों ने इस खबर को पढ़ा.

वेद ज्ञान का भण्डार और चिन्तन है:कुलपति
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  • ज्ञान का दूसरा नाम वेद है: पूर्व सांसद

हाटा/कुशीनगर । वेद एक है। जो ग्रन्थ हमें सदाचार की शिक्षा दे वह वेद है। यह पुरातन ज्ञान विज्ञान का भण्डार होने के साथ साथ चिन्तन भी है। इसमें मानव की हर समस्या का समाधान है। यह ईश्वर द्वारा ऋषियों को सुनाये गये ज्ञान पर आधारित है।

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उक्त बातें बुधवार को महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन एवं श्रीनाथ संस्कृत महाविद्यालय हाटा,कुशीनगर के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी के समापन सत्र को संबोधित करते हुए अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रो मुरली मनोहर पाठक कुलपति श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली ने कही। उन्होंने कहा कि वेद आध्यात्म की शिक्षा के साथ भातिकता की शिक्षा की भी शिक्षा देता है। वेद एक है इसकी चार शाखाएं हैं। वेद वह ज्ञान है जो ब्रह्माण्ड के विषय में सभी विचारों स्त्रोत है।यह सदा अस्तित्व में रहता है। वेद ज्ञान मूल है। बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित पूव्र सांसद कुशीनगर राजेश पाण्डेय ने कहा कि ज्ञान का दूसरा नाम वेद है। वेदों से ही संस्कृति की रक्षा होगी। इससे हमें प्रेरणा प्राप्त होती है। वेदों को आमजन तक पहुंचाने के लिए इसे सरल बनाना होगा जिससे सामाजिक परिवेश में जो विसंगतियां हैं वह दूर होंगी। वेदों का सार उपनिषद है और उपनिषदों का सार गीता है। उन्होंने कहा कि संस्कृत एक ऐसी भाषा है जिसे सुनने से व्यकति मंत्रमुग्ध हो जाता है।

संगोष्ठी के सातवें व आठवें को संबोधित करते हुए डा सूर्यकान्त त्रिपाठी ने कहा कि आधुनिक परिवेश में सांस्कृतिक प्रदुषण को नियंत्रित करने के लिए वेदों को अपनाना होगा। वेद भारतीय मनीषा का सूत्र है। वर्तमान परिवेश में पितृ देवो भव का ह्रास तेजी से हो रहा है इसकी रक्षा वेदों से ही संभव है। डा अर्चना शुक्ला ने कहा कि वेद अपौरुषेय है ज्योतिष इसका नेत्र है। ज्योतिष काल गणना करता है। जीवन की आठ तरंगें हैं। व्यक्ति के जीवन पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता है इसकी जानकारी हमें ज्योतिष से ही हमें प्राप्त होती है। काशी विद्यापीठ के प्रो सुवाष पाण्डेय ने कहा कि वेद को समझना है तो वेदांगों का अध्यन आवश्यक है ।

भारतीय वास्तु शास्त्र के 18 प्रवर्तक हैं। यह शास्त्र प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। सुख समृद्धि के लिए जो भी निर्माण हो वह वास्तु के नियमों के द्वारा ही हो। काशी विद्या पीठ के प्रो विनय कुमार पाण्डेय ने कहा कि गांवों तक जब तक वेदों की मूल संकल्पना नहीं जायेगी तब तक वेदों की तरफ लौटना संभव नहीं है। सांस्कृतिक प्रदुषण की समाप्ति से ही वेद अपना स्थान हासिल कर पायेगा। ज्ञान व विज्ञान का केन्द्र वेद है। समापन सत्र के दौरान इस त्रिदिवसीय संगोष्ठी का सांरांश पूर्व निदेशक द्वारकाधीश संस्कृत एकेडमी द्वारका के प्रो जयप्रकाश नारायन द्विवेदी ने प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत प्रबन्ध समिति के मंत्री महामहोपाध्याय आचार्य गंगेश्वर पाण्डेय ने और आभार प्रबन्धक अग्निवेश मणि ने व्यक्त किया जबकि संचालन संजय पाण्डेय व मोहन पाण्डेय ने किया।

इस दौरान प्राचार्य डा राजेश कुमार चतुर्वेदी,वशिष्ठ द्विवेदी,रामानुज द्विवेदी,सतीश शुक्ल,संजय दुबे,रामगोविंद मणि, बीरेंद्र तिवारी, जय गोविंद मणि, डॉ सुधाकर तिवारी, अवधेश सिंह,दिनेश भारद्वाज, मिथिलेश चौरसिया, संदीप पांडेय सहित आदि मौजूद रहे।

Topics: हाटा

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