Reported By: न्यूज अड्डा कसया and न्यूज अड्डा डेस्क
Published on: Mar 8, 2022 | 8:40 PM
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कुशीनगर। महिला सशक्तिकरण शिक्षा के विकास के बिना संभव नहीं है। वास्तविक सशक्तिकरण तभी होगा जब हमारी नारी शिक्षित और आर्थिक रूप से सशक्त होंगी।पहले आप हमारी महिलाओं को शिक्षित कीजिये तब वे बताएंगी कि उनके लिए क्या आवश्यक है। आगे बढ़ने के लिए पलायन नहीं संघर्ष की जरूरत पड़ती है।बिना संघर्ष के कोई सफर तय नहीं होता ।आप या तो अपनी समस्याओं के लिए दूसरों को दोष दे सकती हैं या उन समस्याओं के निराकरण के लिए संघर्ष करते हुए अपनी मंजिल तय कर सकती हैं ।यह आपके ही हाथ में है। एक समरस समाज के निर्माण के लिए जितना पुरुष के सहयोग की जरूरत है उतना ही महिलाओं को अपने अधिकार के प्रति सचेत रहते हुए अपने स्तर को ऊंचा उठाने की जरूरत है ।लैंगिक समानता शिक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण एवं समाज के सहयोग बिना संभव नहीं है उपरोक्त बातें बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय में महिला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए डॉ सीमा गुप्ता ने कही।
आपका कहना था कि जेंडर इक्वलिटी एक ऐसा विषय है जिस पर समग्र और समन्वित रूप से विचार करने की आवश्यकता है ।एकाकी विचार निश्चित रूप से हमारे परिवार और समाज की मर्यादा के विपरीत होगा और वह समाज के हित में भी नहीं होगा ।मुख्य वक्ता डॉ प्रशिला शैम ने इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए कहा कि नारी सशक्तिकरण के विभिन्न आयामों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा प्रमुख हथियार है। अच्छी शिक्षा के अभाव में महिला सशक्तिकरण और महिलाओं के प्रति समाज में नजरिए में परिवर्तन संभव नहीं है ।आपका कहना था कि हमें समाज में ऐसी महिलाओं को अपना आदर्श मानना चाहिए जिन्होंने शिक्षा, खेल, व्यवसाय, तकनीकी आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं ।हमें अपना लक्ष्य तय करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके लिए बड़े संघर्ष और धैर्य की जरूरत पड़ती है। धैर्य और संघर्ष के अभाव में किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति संभव नहीं है।इस अवसर पर अपने जीवन संघर्ष को एन एस एस के स्वयंसेवक को के साथ साझा किया।अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर संगोष्ठी के विषय ‘एक स्थायी कल के लिए लैंगिक समानता’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉक्टर निगम मौर्य ने बताया कि लैंगिक समानता की दिशा में आगे बढ़ते हुए हमें ध्यान रखना चाहिए कि लैंगिक समानता के नाम पर पुरुष और महिला एक दूसरे के विपरीत चरम चोरों पर खड़े न हो जाये। लैंगिक समानता और विकास एक दूसरे के विरोधी नही बल्कि पूरक होने चाहिए।लैंगिक समानता के विचार का उपयोग सहअस्तित्व की भावना के साथ आगे बढ़ने के होना चाहिए न कि संघर्ष की स्थिति पैदा करने में।आज समाज में ऐसे बहुतेरे उदाहरण देखने को मिल रहे हैं जहां पर लैंगिक समानता के नाम पर पति पत्नी के बीच ऐसे व्यवहार उत्पन्न हो रहे हैं जो झगड़े के कारण बन रहे हैं इससे परिवार और समाज में विभिन्न तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। महिला को अपनी शिक्षा ,अपने लक्ष्य खुद तय करने का अधिकार होना चाहिए ।उसे अपनी शादी, पोषण, अपने पहनावे इत्यादि को चयन करने का अधिकार होना चाहिए। लेकिन उसका यह अधिकार पुरुष के प्रति दुराग्रह का कारण नहीं बनना चाहिए बल्कि दोनों को समन्वित करने का माध्यम बना चाहिए। हमारा सौभाग्य है कि हम ऐसे देश में पैदा हुए हैं जहां समाज में प्राचीन काल से लैंगिक समानता उपलब्ध रही है। हमारी महिलाएं शिक्षा,तकनीकी और व्यवसाय के चयन को लेकर के प्रारंभ से ही स्वतंत्र रहीं हैं ।उनको स्वयंवर के माध्यम से अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार रहा है।बीच में समाज में कुछ गिरावट आई जिसके कारण महिलाओं को पुरुषवादी मानसिकता का शिकार होना पड़ा।यह सच है। पुरुष का पुरुषत्व परिवार के पोषण में सहायक होना चाहिए ना कि किसी महिला पर अत्याचार का माध्यम बनना चाहिए।हम पुरुषों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि महिलाओं के भी अपने अधिकार हैं, अपनी भावनाएं हैं ,अपनी आशाएं हैं ,अपनी महत्वाकांक्षा है।हमको एक पुरुष के रूप में उनको पोषित पल्लवित करने में कतई संकोच नहीं करना चाहिए। महिला निस्वार्थ भाव से परिवार के प्रति अपना जीवन समर्पित कर देती है । महिला की इस निष्ठा का हमें ह्रदय से आदर करना चाहिए, सम्मान करना चाहिए ।वह बिना वेतन लिए 365 दिन परिवार के प्रति समर्पित रहती है। उसके समर्पण और भाव को हमें निष्ठा और आदर के साथ देखते हुए उसके प्रति आदर भाव रखना होगा। तभी समाज में सही मायने में लैंगिक समानता आएगी और हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर पाएंगे।अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में बुध्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सिद्धार्थ पांडे ने जेंडर इक्वलिटी की दिशा में आगे बढ़ने हेतु शिक्षा के महत्व प्रकाश डाला आपने कहा कि महिलाएं आज हर क्षेत्र में तरक्की कर रही हैं ।हमें इस गति को और तीव्रता प्रदान करने की जरूरत है।समाज में महिलाओं के प्रति नजरिया बदला है ।उनमें आत्मविश्वास का संचार हुआ है हमें अपनी तरफ से इसमें बाधक बनने की जगह उसको प्रोत्साहित करने की जरूरत है। कार्यक्रम का संचालक इग्नू अध्ययन केंद्र की समन्वयक और सहआयोजक डॉ सीमा त्रिपाठी ने किया। आगत अतिथियों का परिचय एवं स्वागत हिंदी विभाग के सहयुक्त आचार्य डॉ गौरव तिवारी ने किया। समस्त मंचासीन अतिथियों एवं उपस्थित श्रोताओं का आभार ज्ञापन एन.एस.एस. कार्यक्रम अधिकारी डॉ पारसनाथ से किया।
इस कार्यक्रम का आयोजन महाविद्यालय का इग्नू अध्ययन केंद्र एवं राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इस अवसर पर समाज में विशेष योगदान देने वाली चार महिलाओं को भी सम्मानित किया गया। जिसमें जया मणि त्रिपाठी, नेहा शर्मा व ज्योति शर्मा और प्रियंका राय सामिल रही। जया मणि त्रिपाठी ने ‘राष्ट्रीय युवा संसद महोत्सव2022’ में ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’विषय पर अपने विचार रखते हुए जनपद में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था। इस अवसर पर जया मणि त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किया। ज्योति शर्मा एवं नेहा शर्मा ने 8 वर्ष पूर्व समाज की वर्जनाओं को तोड़कर सलून की दुकान का संचालन शुरू किया।इस अवसर पर आप दोनों बहनों ज्योति शर्मा एवं नेहा शर्मा को सम्मानित किया गया ।कुशीनगर जनपद में स्वच्छता की अग्रदूत बन चुकी और स्वच्छता की दिशा में उल्लेखनीय कार्य करते हुए राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार प्राप्त करने वाली प्रियंका राय को भी इस अवसर पर सम्मानित किया गया। इन विशिष्ट अतिथियों का परिचय कार्यक्रम का संचालन कर रही डॉ सीमा त्रिपाठी ने कराया। संगोष्ठी में इन लोगों की उपलब्धियों पर पूर्व प्राचार्य डॉ अमृतांशु शुक्ला ने भी प्रकाश डाला। एन.एस.एस. की छात्राओं ने सरस्वती वंदना एवं राष्ट्रगान कराया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सभागार में महाविद्यालय के शिक्षकगण डॉ उर्मिला यादव, रीना मालवीय, डॉ रेखा तिवारी ,डॉ किरन जायसवाल,डॉ सिद्धि केसरवानी, डॉ राम भूषण मिश्र, डॉ शंभू दयाल कुशवाहा, डॉ अनुज कुमार,डॉ सौरभ द्विवेदी, डॉ निरंकार राम त्रिपाठी, डॉ पंकज दुबे, डॉ कृष्ण कुमार जायसवाल,पत्रकार श्री राजेन्द्र शर्मा,एन. एस.एस. के स्वयं सेवक व स्वयं सेविकाएँ आदि उपस्थित रहे। एन.एस.एस. के स्वयंसेवकों ने व्यवस्था से लेकर के कार्यक्रम के संचालन तक मैं अपनी तरफ से पूरा सहयोग दिया।
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