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आजादी के दीवानों के लहू से कुशीनगर की धरती भी हुई थी लाल

न्यूज अड्डा डेस्क

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Aug 8, 2022  |  10:41 AM

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आजादी के दीवानों के लहू से कुशीनगर की धरती भी हुई थी लाल

कुशीनगर। देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए कुशीनगर जिले के भी तमाम सपूतों ने जंग-ए-आजादी में अपना लहू बहाया। उनके इंकलाब की आवाज को दबाने के लिए अंग्रेजों ने कुछ को जिंदा जलवा दिया, कुछ को गोलियों से भून दिया। इन्हीं में से कुछ ऐसे भी रहे जिन्हें कारागार में डाल दिया गया। उस जमाने में अंग्रेजाें के खिलाफ बगावत करने वालों को बूटों से भी मारने की सजा दी जाती थी। जिले में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें गुजरी बातें याद करके आज भी उनके शरीर में सिहरन दौड़ जाती है।

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दुदही विकासखंड का बांसगांव टोला खैरवा ऐसा ही एक ऐतिहासिक गांव है। 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में यहां के वाशिंदों ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। दुदही में रेल लाइन को उखाड़ डाला, टेलीफोन के तारों को काट दिया और सरकारी गोदामों को लूटकर गरीबों में बांट दिया था। इससे झल्लाए अंग्रेजों ने पूरे खैरवा गांव को फुंकवा दिया। स्त्री, पुरुष, बच्चे सभी गांव छोड़कर महीनों तक दूसरी जगह रहने के लिए विवश हो गए थे। इनकी अगुवाई करने वाले फिरंगी, बउक, शिव, भिखारी, फागू समेत ढेर सारे लोगों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया गया था। अंग्रेजी हुकूमत ने फिरंगी और भिखारी को एक-एक साल की सजा, बउक और शिव को छह-छह महीने की सजा सुनाई थी। आजादी के बाद भारत सरकार ने फिरंगी समेत कई लोगों को ताम्र पत्र दिया। 1963 में इस गांव में सरकार ने एक जूनियर हाईस्कूल खोला और गांववालों को पानी पीने के लिए पांच कुएं बनवाए।

विशुनपुरा क्षेत्र के चिरइहवा टोला सिसहन के रहने वाले बाबूराम कुशवाहा भी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों की गोली से शहीद हो गए थे। 1942 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने एक जुलूस निकालने की योजना बनाई थी। इसी क्षेत्र के वृंदावन निवासी खुदादीन मियां के यहां बैठक के बाद जुलूस निकला। कहा जाता है कि सैकड़ों लोगों ने इस जुलूस में हिस्सा लिया था। ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हुए जुलूस में शामिल लोग मंसाछापर होते हुए नंदलाल छपरा पहुंचे ही थे कि अंग्रेजों ने जुलूस पर लाठियां तोड़नी शुरू कर दी थीं। इसके बावजूद आजादी के दीवाने नहीं माने तो अंग्रेजों ने गोलियां दागनी शुरू कर दीं। अंग्रेजों की ओर से चलाई गई एक गोली बाबूराम कुशवाहा के सीने में लगी और वे मौके पर ही शहीद हो गए। उनकी स्मृति में नंदलाल छपरा में ही एक स्मारक बनवाया गया है, जो अतिक्रमण का शिकार है। ब्लॉक परिसर में भी एक स्मारक है, जिस पर उमर, खुदादीन, चिरकुट, झकरी, फूलकुंवर, बरन, विश्वनाथ मिश्र, बाबूनंदन, बिंदेश्वरी भगत, राजबली, रघुनाथ, सिंहासन राय, सलीम उर्फ दीपक सहित 13 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों नाम अंकित है। यह स्मारक भी उपेक्षित है। इसके अलावा जिले में कई और भी स्थल हैं, जिनका स्वतंत्रता संग्राम में काफी महत्व रहा है।
नेबुआ नौरंगिया क्षेत्र के जगरनाथ दूबे, बुधन, मदन, महादेव, मोल्हू, महावीर तेली, रामजी, सरजू, सुकई, श्यामदेव और श्यामबदन तिवारी सहित दस लोगों ने भी जंग-ए-आजादी में अपने प्राणों की आहुति दी थी। इनकी याद में यहां वर्ष 1972 में शहीद स्मारक स्थापित किया गया था।
सेवरही नगर पंचायत के वार्ड नंबर-02 जानकी नगर में अंग्रेजों ने आधा दर्जन लोगों को गोली मार दी थी। उनके नाम का शहीद स्मारक भी कस्बे में स्थित है। इसके अलावा हाटा, कसया समेत जिले के कई स्थानों पर शहीदों की याद में स्मारक स्थापित किए हैं लेकिन जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को इनकी याद केवल राष्ट्रीय पर्वों पर ही आती है।

घर छोड़कर भागने में मजबूर हो गए थे लोग: कप्तानगंज क्षेत्र के सिधावट गांव के पास क्रांतिकारियों ने1938 में ट्रेन में आग लगा दी थी। इसमें सिधावट गांव के भी कुछ लोग शामिल थे। अंग्रेजों ने कुछ लोगों को चिह्नित कर लिया और उन्हें पकड़ने के लिए गांव में काफी लूट-पाट की थी। गांव में भगदड़ मच गई थी। लोगों को अपने घर के आभूषण, रुपये और कीमती सामान जमीन में दबाकर छोड़ना पड़ा था। पकड़े गए लोगों को अंग्रेजों ने पेड़ों में बांधकर पीटा था। वही फाजिलनगर क्षेत्र के जौरा बाजार में स्थित प्राचीन शिवमंदिर भी आजादी की जंग का गवाह है। लोग बताते हैं कि आजादी के लिए लड़ने वाले लोग रात में इस मंदिर पर एकत्र होते थे। मीटिंग में आगे की रणनीति पर विचार किया जाता था और फिर निर्धारित स्थान के लिए सभी लोग रवाना हो जाते थे। आजादी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति दिवंगत फिरोज गांधी, मंगल उपाध्याय, सिब्बन लाल सक्सेना सहित कई लोग इस स्थान पर आए थे। इसके अलावा सुकरौली के पास स्थित विजयी काफ गांव को भी मातृ भूमि की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण बताया जाता है।

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