Reported By: न्यूज अड्डा कसया
Published on: Apr 9, 2024 | 3:53 PM
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कसया। मैनपुर गांव में तीनों ओर से कंदराओं से घिरा मां मैनपुर कोटेश्वरी देवी मंदिर में चैत्र नवरात्र की पहले दिन मंगलवार को दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी।मंगलवार सुबह भोर से ही भक्तो का आना शुरू हो गया।
श्रद्धालओं ने माता के दरबार में हाजिरी लगाई, पूजा-अर्चन किया। यहां नवरात्र में भक्त कलश स्थापना के साथ नौ दिनों तक मां भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।ऐसी मान्यता है कि माँ कोटेश्वरी देवी सबकी मुरादें पूरी करती है।इस बार चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल मंगलवार से प्रारम्भ होकर 17 अप्रैल बुधवार को पूर्णाहुति होंगी।नवरात्र की शुरुआत होते ही मां का मंदिर और भी जगमगाने लगता है। हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ माता के दरबार में पहुंचती है। मैनपुर कोट शक्तिपीठ के अतीत की कहानी गौरवशाली और आध्यात्मिक है।भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर से 12 किमी पूरब-दक्षिण दिशा में खौवा व बाड़ी नदी के बीच स्थित मैनपुर कोट मंदिर से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी है। यह एक आध्यात्मिक व पौराणिक स्थल के रूप में सर्वमान्य है।यहां बारहों महीने श्रद्धालुओं के आने-जाने का सिलसिला चलता रहता है। स्थानीय लोगों में साथ बिहार और अन्य प्रांतों के श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र होने के नाते नवरात्रों में यहां श्रद्धालुओं का रेला लगा रहता है। इस सिद्ध स्थल का उल्लेख श्रीलंका के बौद्ध ग्रंथ दीपवंश में भी है।मल्लों की छावनी था मैनपुर कोट ऐतिहासिक कुशीनारा (वर्तमान कुशीनगर) का वर्णन बौद्ध धर्मग्रंथ दीपवंश में भी मिलता है। वर्णन के मुताबिक कुशीनगर मल्लों की राजधानी थी। मल्लों ने मैनपुर को अपनी छावनी बनाया था। इसमे भगवान बुद्ध के निर्वाण स्थली के उल्लेख के साथ ही मैनपुर को छावनी के रूप में वर्णित किया गया है।
मल्लों की उद्धारक देवी थीं मां दीपवंश यह बताता है कि मैनपुर कोट की देवी मल्लों की उद्धारक थीं। कोई आपदा हो या युद्ध में जाने का समय, पहले माता का पूजन-अर्चन होता था। इसके बाद ही निदान या युद्धघोष किया जाता था। माता के कृपा से ही मल्लों और उनके राज्य के लोगों के उद्धार होने का विश्वास था।पांडवों ने बिताया था अज्ञातवास का कुछ समय जनश्रुतियों के मुताबिक मैनपुर कोट का संबंध महाभारत काल से भी है। ऐसा कहा जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडय यहां भी कुछ समय बिताए थे। उस समय यह क्षेत्र देवारण्य के रूप में विख्यात था।बंजारों की कुल देवी थीं भगवती बेतों के घने जंगल से घिरे इस क्षेत्र में आसपास बंजारों की आबादी थी। वे मैनपुर की भगवती को अपना कुल देवी मनाए थे। बंजारे यहां पूजन-अर्चन करते और माता का आशीष लेते थे। बीसवीं शताब्दी तक यहां बंजारों का निवास था। बंजारे इस देवी को कुलदेवी के रूप में पूजते रहे। आज भी आसपास मौजूद बेंत इसकी गवाही देते हैं।
मंदिरों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम: चैत्र नवरात्र पर मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी।इसको देखते हुए प्रमुख मंदिरों में माँ मैनपुर देवी ,माँ कुलकुला देवी मंदिर सहित अन्य जगह सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।
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