News Addaa WhatsApp Group

अज़ल की ओर..

न्यूज अड्डा डेस्क

Reported By:

Apr 18, 2023  |  8:52 PM

495 लोगों ने इस खबर को पढ़ा.
अज़ल की ओर..

कई दफे कोई अफसाना या कहानी लिखते वक़्त एक ऐसा नाजुक दौर भी आता है, जब एक कलमकार की कलम उसके इख्तियार से बाहर हो जाती है। गैरों के मुताल्लिक तो यह बात यकीन से नहीं कह सकता पर मेरे बाबत यह हकीकत, कयामत जितनी ही मनासिब है। कलम की बेवफाई अम्मन एक ही चीज साथ लाती हैं और वह है ख़ला । खला, जिसकी आमद होती है अचानक किसी किरदार या फ़लसफ़े के कहानी से जुदा हो जाने पर।

आज की हॉट खबर- न्यू ईयर की आहट, शराब माफिया की हलचल,कुशीनगर पुलिस ने...

बहरहाल आज से करीब 25 बसंत पहले भी एक ऐसा ही इत्तेफ़ाक़ पेश आया था, जब मेरी ही तरह एक और कलमकार की कलम भी उसे दगा दे गई थी। हम दोनों के दर्मियां का फर्क महज इतना ही है की, मैं अपनी कलम से हम सभी के मुक़द्दर में आ चुकी कहानियाँ लिखता हूँ और वह अपनी कलम से हम सभी के मुकद्दर में आने वाली कहानियाँ लिखता है। मेरी बात का ताल्लुक उसी से है, जिसने आज से सदियों पहले अपनी कलम से इस कायनात की बुनियादों को सलाखा था और जिसका एहतराम हम परवरदिगार के तखल्लुस से करते हैं।

जब-जब नाना जी का जिक्र आता है, तब तब मन पीछे की ओर चल पडता है। और चलते चलते 19 अप्रैल, 1998 की उसी धुन्धली तारीख पर पहुँच जाता है, जब नाना जी हम सब से दूर एक अंतहीन सफर पर चले गए थे।

जेहन पर जमी धूल को थोड़ा और साफ करूँ तो आँखों के आगे एक तस्वीर उभरती है, जिसमें अप्रैल की एक गुनगुनी गर्मी वाली सुबह, मैं खुद को एक काली बुलेट मोटरसाइकिल की टंकी पर बैठा हुआ पाता हूँ। हाथ में बुलेट की चाभी है, जिसको लेकर मैं उसकी टंकी पर कुछ उकेरने की जद्दोजहद कर रहा हूँ, जैसा की 2 साल के बच्चे अमूमन करते हैं।

मेरे बाएँ हाथ की ओर एक शख्स भी है जो अपने हाथों से मुझे थामे हुए है ताकी मैं गिर ना पहूँ। कुछ देर बाद वहीं बगल में खड़ा शख्स अचानक मुझे गोद में उठा लेता है और कहने लगता है – “बाबू, नाना जी को चाभी दे दो।”

इससे पहले मैं कुछ समझ पाता चाभी मेरे हाथों से ली जा चुकी थी। नाना जी ने मेरे तरफ देखते हुए बाय का इशारा किया। वह सज्जन जो मुझे गोद में लिए हुए थे, उनकी आवाज़ कान में पड़ी- “नाना जी को बाय कर दो।” इससे पहले की मैं उन्हें बाय कर पाता, नाना जी मोटरसाइकिल स्टार्ट करके कुछ दूर जा चुके थे। उसके बाद मैं कैसे अन्दर घर में गया और कब मैं नींद की आगोश में फिसल गया, इसका कोई दुरुस्त खाका मेरे जेहन में नहीं है।

हाँ, नींद टूटने के बाद का मंजर बखूबी याद है उस दिन के बाद से उस घर में ना जाने कितनी ही बार रंगाई- पुलाई हुई होगी, पर 19 अप्रैल के उस मातम की परछाई, घर की उन दीवारों पर आज भी जस की तस है।

होश संभाला तो पता लगा की उस दिन एक जाहिल आदमी की बेतरतीब ड्राईविंग का खामियाजा हमारे परिवार को उठाना पड़ा। कुछ और बड़े हुए तो पता लगा की मैं उस शख्सियत का नाती हैं जिसने उत्तर प्रदेश के एक सुदूर कोने पर बसे अहिरौली मिश्र नाम के देहात को बिना किसी राजनीतिक पदे पर रहे अपने निजी संसाधनों के बल पर बिजली, टेलीफोन, गौशाला और डिग्री कॉलेज जैसी सौगाते दी।

नाना जी की शख्सियत की विराट काया का अन्दाजा मुझे वास्तव में तब हुआ, जब दिल्ली में मेरे ननिहाल के पास के गाँव के एक अधेड़ उम्र के फल विक्रेता ने यह पता लगने पर मुझ से पैसे लेने से इंकार कर दिया, की मैं ‘चौबे जी का नाती है। बकौल फल विक्रेता अरसे पहले उसके बच्चे के इलाज में मेरे नाना जी ने कोई आर्थिक सहायता दी थी। बस इसी संयोग ने इस पोस्ट को लिखने पर मजबूर कर दिया।

दुनियावी मायनों में भले ही उस दिन सड़क हादसे में एक जाने-माने शख्स का इंतकाल भर हुआ हो, पर यह इंतकाल महज किसी शख्स का नहीं बल्कि बेशुमार ख्वाबों का भी था। वह ख्वाब जो दशकों पहले एक नौजवान ने अपनी एक छोटी सी दुकान की बुनियाद रखते वक्त देखे थे। उन्हीं ख्वाबों को आगे चलकर उस नौजवान ने कभी किसान डिग्री कॉलेज, तो कभी संस्कृत पाठशाला, गौशाला, टेलीफोन सेवा और बिजली घर की शक्ल देकर हकीकत बनाया। इसलिए 19 अप्रैल के उस चौथे पहर जब परवरदिगार की कलम ने उससे रुसवाई की. तो किसी ने अपना पिता खोया, तो किसी ने अपना भाई पर मैने अपने नाना जी को खोया, जो बस कुछ ही देर मैं लौटने के वादे के साथ मुझे छोड़े गए थे। इस बात से बेखबर की अब मुकद्दर लिखने वाले का भी इख्तियार उसकी कलम पर नहीं रहा।

आज जब वक्त का यह काफिला, अप्रैल के इस 18वें अन्धेरे से निकलकर 19वें उजाले की दहलीज पर कदम रख रहा है, तो नज़रे मुसलसल इस हल्के सियाह फलक को निहार रही हैं उस खुदा की तलाश में, जिसका क्रयाम कहीं इन अनी के दरमियाँ ही है। पर किसी गिले-शिकवे के मकसद से नहीं, बस एक जवाब की इल्तिजा लिए। वही जवाब जो बाज़कात हम इस सवाल से रुबरु होने पर देते हैं-“आखिर तुमसे ऐसा कैसे हो सकता है?

– अविरल पाण्डेय

संबंधित खबरें
तुर्कपट्टी : पिकप से तीन गो बंश बरामद,एक गिरफ्तार
तुर्कपट्टी : पिकप से तीन गो बंश बरामद,एक गिरफ्तार

कुशीनगर। जनपद में गोतस्करी के विरुद्ध चलाए जा रहे सघन अभियान के तहत तुर्कपट्टी…

कुशीनगर : लगभग 204656 बच्चों ने पी दो बूंद जिंदगी की -सीएमओ ने आधा दर्जन बूथों का किया निरीक्षण
कुशीनगर : लगभग 204656 बच्चों ने पी दो बूंद जिंदगी की -सीएमओ ने आधा दर्जन बूथों का किया निरीक्षण

पड़रौना,कुशीनगर। जनपद में पोलियो अभियान का शुभारंभ रविवार को सीएमओ डॉ चंद्रप्रकाश द्वारा राजकीय…

क्रिकेट का महाकुंभ: दाहूगंज चकला फील्ड पर 15 से 22 दिसंबर तक राज्य स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता
क्रिकेट का महाकुंभ: दाहूगंज चकला फील्ड पर 15 से 22 दिसंबर तक राज्य स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता

कुशीनगर। जिले के तमकुहीराज थाना क्षेत्र अंतर्गत दाहूगंज बाजार स्थित चकला फील्ड, कुशीनगर में…

न्यू ईयर की आहट, शराब माफिया की हलचल,कुशीनगर पुलिस ने तोड़ी तस्करों की कमर
न्यू ईयर की आहट, शराब माफिया की हलचल,कुशीनगर पुलिस ने तोड़ी तस्करों की कमर

कुशीनगर। बिहार में पूर्ण शराबबंदी और आगामी न्यू ईयर के मद्देनज़र शराब माफिया एक…

News Addaa Logo

© All Rights Reserved by News Addaa 2020

News Addaa Breaking