Reported By: सुनील नीलम
Published on: Jul 13, 2025 | 7:20 PM
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तुर्कपट्टी/रहसू बाजार: “अनमन देवता, पनमन देवता, पनिया के परल अकाल हो…” इन दिनों पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों की गलियों में यह लोकगीत गूंज रहा है। लगातार बारिश न होने के कारण क्षेत्र में सूखे की आशंका गहराने लगी है। ऐसे में ग्रामीणों ने अपनी परंपरागत लोक आस्थाओं का सहारा लेना शुरू कर दिया है।
रविवार को नदवा बिशुनपुर गांव में युवकों की टोली पारंपरिक वेशभूषा में गांव-गांव घूमते हुए गीत गाते नजर आई। वे कीचड़ में लोट रहे थे और घर-घर जाकर लोगों से बारिश के लिए देवी-देवताओं से प्रार्थना करने की अपील कर रहे थे। यह मान्यता है कि इस प्रकार की प्रार्थना और लोकनाट्य प्रदर्शन से इंद्र देव प्रसन्न होते हैं और वर्षा होती है।
गांव की महिलाओं ने भी देवी स्थानों पर धूप-दीप जलाकर पूजा-अर्चना की। वे भी गीत गाती हुई गलियों में घूम रही थीं और परंपरा अनुसार सामन पड़ने वाले लोगों पर कीचड़ फेंक रही थीं। लोक मान्यता है कि गाली देने और कीचड़ फेंकने से इंद्रदेव प्रसन्न होते हैं।
जुलाई माह में पर्याप्त वर्षा नहीं होने से खेतों की फसलें सूखने लगी हैं। नहरों की सिंचाई व्यवस्था भी विफल होती नजर आ रही है। ऐसे में ग्रामीणों का भरोसा अब सरकार की बजाय अपनी लोक आस्था पर अधिक है।
अनमन देवता, पनमन देवता, पनिया के परल अकाल हो,
गांव के बगिचवा सुख गइल बा, खेतिया में दरार हो।
अबकी बार बरखा भेज द, खेतिया में हरियर पाल हो,
अनमन देवता, पनमन देवता, पनिया के परल अकाल हो।
करे के परल इंदिरा माई से अरज, पनिया से भर जाई गड़हा तलाब हो।
रुइया फसल सुख जाई, भैंसवा दूध ना देवई,
एहसे तोहसे करब हम बिनती हजार हो।
अनमन देवता, पनमन देवता, पनिया के परल अकाल हो।
अनमन देवता और पनमन देवता के गीत अब आसपास के कई गांवों में सुनाई देने लगे हैं। कुछ गांवों में तो बारिश के लिए हवन और मंत्र जाप का सिलसिला भी शुरू हो गया है।
बारिश की कमी से परेशान किसान और ग्रामीण एक बार फिर अपने पारंपरिक विश्वास और अनुष्ठानों की ओर लौट आए हैं। यह घटनाक्रम न केवल लोक आस्था की शक्ति को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि जब सरकारी योजनाएं असफल होती हैं, तो जनता अपने भरोसेमंद उपायों की ओर रुख करती है।
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