Reported By: Sanjay Pandey
Published on: Sep 3, 2024 | 6:57 PM
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खड्डा/कुशीनगर। महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट के ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय ने बताया कि हरितालिका तीज व्रत भाद्रपद शुक्ल तृतीया को करने का विधान है व तृतीया दुतिया से विद न हो कर चतुर्थी से विद हो तो अत्यंत शुद्ध है, क्योंकि दुतिया तिथि पितरों की तिथि व चतुर्थी पुत्र की तिथि मानी गयी है जो शुक्रवार को इस वर्ष तृतीया तिथि दिवा 12:08 तक पश्चात् चतुर्थी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी जो अत्यन्त शुभ है।
इस वर्ष शुक्रवार का दिन, हस्त नक्षत्र पश्चात् चित्रा नक्षत्र रहेगा। शुक्ल योग मिल रहा है। ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय ने बताया कि इस व्रत को शास्त्र में सधवा व विधवा सबको करने की आज्ञा है। व्रत करने वाली स्त्रियों को चाहिए की व्रत के दिन सायं काल घर को तोरण आदि से सुशोभित कर आँगन में कलश रख कर उस पर शिव एवं गौरी की प्रतिष्ठा कर उनका षोडशोपचार या पञ्चोपचार पूजन करें व माँ गौरी का ध्यान कर निम्न मन्त्र का जप यथा सम्भव करें। मन्त्र – देवि देवि उमे गौरी त्राहि माम करुणा निधे। ममापराधा छन्तव्य भुक्ति मुक्ति प्रदा भव।। का जप करती हुए रात्रि जागरण करें, दिन व रात में निराहार रहने का विधान है, दूसरे दिन प्रातः सूर्योदय के पश्चात् पारणा करें। शरीर में समर्थ रहने तक व्रत करें उम्र की कोई सीमा नही है। व्रत के उद्यापन के समय शिव व माँ पार्वती की स्वर्ण की प्रतिमा या मिट्टी की मूर्ति बनवाकर सायं काल घर के मध्य (आँगन) या पूजा स्थान में पर स्थापित करें, पश्चात् पूजन करें व शिव के पञ्च वस्त्र व माता जी के लिए तीन वस्त्र व श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें। इसी दिन हरी काली, हस्त गौरी व कोतिश्वरी आदि के व्रत भी होते हैं, इसमें माँ पार्वती के पूजन की प्रधानता है।
इस व्रत को भगवान शिव की प्राप्ति हेतु पर्वत राज तनया माँ पार्वती ने सर्व प्रथम किया था। निष्ठा पूर्वक इस व्रत का पालन करने वाली स्त्रियाँ सदा सौभाग्यवती बनी रहती हैं।
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