Reported By: Ved Prakash Mishra
Published on: Jan 20, 2024 | 5:01 PM
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हाटा/कुशीनगर। भक्ति में समर्पण होता है भक्त भगवान को बिना किसी भौतिक इच्छा के सिर्फ उसे पाने के लिए पूजा करता है। साधना किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए की जाती है। यदि इसमें सावधानी नहीं बरती गई तो लक्ष्य प्राप्त करना असंभव हो जाएगा। उक्त बातें श्रीनाथ संस्कृत महाविद्यालय के शताब्दी वर्ष तथा अयोध्या में श्री राम लाल के प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर आयोजित राम कथा के तीसरे दिन शनिवार को कथा का रसपान कराते हुए कथा व्यास पंडित रामज्ञान पांडेय ने कही।
उन्होंने मनु सतरूपा के आख्यान को विस्तार पूर्वक बताते हुए कहा कि राजा मनु परम ब्रह्म से अवतार लेने के लिए आग्रह करते हैं। वहां से आकाशवाणी होती है मेरा कोई रूप व नाम नहीं है। फिर अवतार कैसे लिया जाय क्योंकि मैं तो अखंड ब्रह्मांड नायक ब्रह्म हूं। मनु ने निवेदन करते हुए कहा कि भगवान का नाम और रूप मैं दूंगा। भगवान का नाम और रूप भक्त के अधीन होता है। भक्त जिस रूप में भगवान को भजना चाहता है। वह रूप भगवान को धारण करना होता है।
कथा व्यास श्री पांडेय ने श्रद्धा और भक्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्रद्धा अनुशासन में बंधी होती है और भक्ति और अनन्यता के साथ न्योछावर करती रहती है ।श्रद्धा में आदर की सरिता बहती है वहीं भक्ति में प्रेम का समुद्र लहराता है। श्रद्धा स्थिर होती है और भक्ति मचलती रहती है श्रद्धा श्रेष्ठ के प्रति होती है और भक्तिआराध्य के प्रति।
इस दौरान महाविद्यालय के प्रबंध समिति के प्रबंधक अग्निवेश मणि, मंत्री गंगेश्वर पांडेय, प्राचार्य डॉ राजेश कुमार चतुर्वेदी, सुधाकर तिवारी, जोखन प्रसाद बरनवाल, दिलीप जायसवाल, पूर्व प्राचार्य डॉ राम सुभाष पांडेय सहित नगर के गणमान्य व शिक्षक उपस्थित रहे।
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