कुशीनगर । राष्ट्रीय राजमार्ग पर इन दिनों लक्जरी बसे और ओवरलोड ट्रकों का संचालन खुलेआम हो रहा है। बिना वैधानिक प्रपत्र और ओवरलोड सामान से भरी ये गाड़ियाँ फर्राटे भर रही हैं। सवाल यह है कि जब प्रदेश सरकार बार-बार पारदर्शिता और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था की दुहाई देती है, तो आखिर ज़मीनी स्तर पर इन आदेशों की धज्जियाँ कौन उड़ा रहा है?
सूत्र बताते हैं कि यह पूरा खेल “इंट्री शुल्क” के दम पर चल रहा है। उप संभागीय परिवहन अधिकारी कुशीनगर और उनके मातहतों की मिलीभगत से यह गोरखधंधा न सिर्फ फल-फूल रहा है, बल्कि प्रदेश सरकार की राजस्व को करोड़ों का नुकसान भी पहुँचा रहा है।
कैसे खेला जा रहा खेल?
- हाईवे पर दौड़ रही लक्जरी बसें सवारी कम और लगेज ज़्यादा लेकर चल रही हैं।
- विभागीय चेकिंग दल के सामने से यह गाड़ियाँ आराम से गुजरती हैं।
- “सुविधा शुल्क” की एवज में इन्हें खुली छूट दी जाती है।
- परिणाम यह कि जहाँ सरकार को भारी भरकम राजस्व मिलना चाहिए, वहीं बिचौलियों और विभागीय मिलीभगत से पैसा सीधे जेबों में जा रहा है।
टोल प्लाज़ा सलेमगढ़ का खुलासा
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि टोल प्लाज़ा पर खुद ये गाड़ियाँ ओवरलोडिंग का शुल्क जमा करती हैं। यानी ओवरलोडिंग का लिखित प्रमाण टोल प्लाज़ा की रसीदों में दर्ज है। लेकिन परिवहन विभाग की कार्रवाई शून्य है। आखिर अब तक कितनी लक्जरी बसों या ट्रकों पर ओवरलोडिंग का चालान काटा गया? यह आंकड़ा टोल प्लाज़ा की रिपोर्ट से मेल नहीं खाता। साफ है कि यहाँ कोई बड़ा खेल चल रहा है।
सरकार की मंशा बनाम ज़मीनी हकीकत
प्रदेश सरकार लगातार पारदर्शिता और ईमानदारी पर जोर देती है, लेकिन कुशीनगर में तस्वीर इसके ठीक उलट है। सवाल उठता है कि क्या सरकार की मंशा को विभागीय अफसर ही ठेंगा दिखा रहे हैं?
कुशीनगर में ओवरलोडिंग और फर्जी इंट्री का यह गोरखधंधा अब किसी रहस्य से कम नहीं रहा। जरूरत है कि इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच हो, ताकि राजस्व चोरी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके।
(शेष अगले अंक में – बिचौलियों का नेटवर्क और विभागीय संरक्षकों की परत-दर-परत पोल खोलने वाली रिपोर्ट)