Reported By: Surendra nath Dwivedi
Published on: Aug 19, 2025 | 1:20 PM
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कुशीनगर। आप तस्वीर देखकर चौंक जाइए मत…! यह कोई मेट्रो ट्रेन नहीं, बल्कि 16 सीटों में पास की गई एक लग्ज़री बस है, जिसमें करीब सौ यात्रियों को ठूंसकर दिल्ली से मुजफ्फरपुर तक “सुलभ यात्रा” कराई जाती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सफर वास्तव में सुलभ और सुरक्षित है…?
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विभाग की आंखों पर पट्टी या जेब में नोट?
हैरानी की बात यह है कि ऐसी बसें कोई दो–चार नहीं बल्कि दर्जनों की संख्या में रोज़ाना हाईवे पर दौड़ती हैं। उप संभागीय परिवहन अधिकारी और यात्री कर अधिकारी की आंखों के सामने से यह अवैध खेल गुजरता है, लेकिन कार्रवाई का नामोनिशान नहीं।
सूत्र बताते हैं कि इस पूरे खेल का मास्टर प्लान विभागीय अफसरों और उनके भरोसेमंद ‘कामधेनु’ सिपाहियों ने बनाया है। हाईवे किनारे ढाबों और रेस्टोरेंट की मिलीभगत से यह नेटवर्क और भी मजबूत हो चुका है।
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16 सीट की बस बनी “मैट्रो ट्रेन”
जिन गाड़ियों को विभाग ने सिर्फ 16–17 सीटों में पास किया है, वे आज मेट्रो ट्रेन की तरह हाईवे पर दौड़ रही हैं। कल ही एक ऐसी बस का उदाहरण सामने आया, जिस पर अलग-अलग जिलों में 98 चालान दर्ज हो चुके हैं। इसके बावजूद वह खुलेआम यात्रियों से भरी फर्राटे भर रही है।
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हादसों का काला इतिहास, नाम बदलकर फिर सड़कों पर!
इतना ही नहीं, कई ऐसी बसें जिन पर सड़क हादसों की एफआईआर दर्ज हैं, वे अपना कंपनी ट्रेड नाम बदलकर और विभागीय कृपा से दोबारा सड़कों पर उतर चुकी हैं। जानकारों का कहना है कि इन गाड़ियों को “फिर से जीवनदान” देने के पीछे की असली वजह है – सुविधा शुल्क की गंगोत्री, जिसमें सारा कानून और नियम बहकर खत्म हो गया है।
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यात्रियों की जुबानी, सफर या सजा?
इन बसों में सफर करने वाले यात्री अपनी मजबूरी बयां करते हुए कहते हैं –
👉 “भाई साहब! हमें तो बस दिल्ली पहुँचना था, सीट नहीं मिली तो यही पकड़ ली। अब भीड़ में बैठकर लग रहा है जैसे जान जोखिम में डालकर सफर कर रहे हों।”
वहीं एक महिला यात्री ने व्यथा सुनाई –
👉 “बस में सांस लेना मुश्किल है, हर पल डर लगता है कि कहीं हादसा न हो जाए। लेकिन मजबूरी है, सस्ती लगती है तो लोग बैठ जाते हैं।”
यात्रियों का यह दर्द साफ दिखाता है कि ये बसें सफर नहीं, बल्कि मौत के मुंह में छलांग लगाने जैसा अनुभव कराती हैं।
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जनता की जान से बड़ा ‘जुगाड़’?
कुशीनगर का हाईवे इन दिनों “लक्ज़री बसों का मेट्रो ट्रैक” बन चुका है। सवारी की जान से ज्यादा अहमियत मिल रही है विभागीय मिलीभगत, सुविधा शुल्क और ढाबा–रेस्टोरेंट का नेटवर्क को।
अब बड़ा सवाल यह है कि –
👉 क्या परिवहन विभाग हादसों का इंतजार कर रहा है?
👉 या फिर यह जिम्मेदारी की गहरी नींद में सोया हुआ है?
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संक्षेप में:
यह पूरा खेल सिर्फ कुशीनगर ही नहीं, बल्कि पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश के यात्रियों की सुरक्षा से खिलवाड़ है। हाईवे पर दौड़ रही ये “लक्ज़री मेट्रो बसें” हर सफर में मौत का खतरा लेकर चल रही हैं…और विभाग, ढाबा और दलाल इस खतरनाक खेल के मूक दर्शक नहीं बल्कि सक्रिय खिलाड़ी हैं।
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