कप्तानगंज/कुशीनगर। स्थानीय नगर की साहित्यिक,सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था प्रभात साहित्य सेवा समिति की मासिक काव्य गोष्ठी 375 वीं कवि विनोद गुप्ता के वहां बेनी गोपाल शर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। संचालन किया शायर अर्शी बस्तवी।
कन्हैया लाल करुण ,सरस्वती वंदना से कवि गोष्ठी का शुभारम्भ हुआ।बाद में इन्होंने ने यह रचना प्रस्तुत किया-
“पहले मिलते थे हंस हंस कर
अब बात बात पर रोना।”
इसके बाद अमजद अली ने खूब सुनाया-
“इन आँखों की अश्कों की जुदाई कर देना
अपने दिलों से सारे गमों की जुदाई कर देना”
कवि आनन्द गुप्त अनुज ने यह सुनाया-
“हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है,हमारे जीवन की परिभाषा है
अमन चैन हो अपने राष्ट्र में,अपनी तो यही अभिलाषा है”
इसके बाद शायर नूरुद्दीन नूर ने यह सुनाया-
“इश्क अगर हो जाये यूं खता नहीं करते
हम तो प्यार वाले हैं हम दगा नहीं करते।”
कवि बेचू बीए ने पीड़ा, दर्द को लेकर यह गीत सुनाया
“तुम्ही बताओ कितना टूटू ,अपनों से मैं कितना रूठूँ
आंसू सुख गए आंखों से किस तरह से कितना सिसकूँ”
शायर इम्तियाज समर ने गजल के चंद अशआर सुना कर गोष्ठी को ऊंची चाई दिया-
“दिल से दिल जोड़ देती है,सिर्फ हिंदी जुबान है यारों”
मेजबान विनोद गुप्त ने भी लाजवाब सुनाया–
“मन करेला की तोहरे में समा जाई हम
हुस्न के आगे एगो दिगज्ज महल बाड़ू तूं।”
इसके बाद संचालन कर रहे शायर अर्शी बस्तवी ने हिंदी दिवस पर यह सुनाया-
“सभ्यता का जहांन है हिंदी
अपने भारत की शान है हिंदी।”
डा. नर्वदा ने यह सुनाया–
“तेरे ख्यालों में भला मैं कब तक रहूंगा
घुट घुट कर इस तरह कब तक जीऊंगा”
अंत में अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि बेनी गोपाल शर्मा ने यह सुनाया।
“अपने संस्कारों की जननी है हिंदी
अपने विचारों की जननी है हिंदी।”
इस मौके पर दिलीप कुमार कन्नौजिया, इस्लाम अली सहित कविवर श्रोता उपस्थित रहे।
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