Reported By: न्यूज अड्डा डेस्क
Published on: May 2, 2022 | 7:51 PM
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पडरौना/कुशीनगर। भगवान विष्णु के दशावतार में छठे अवतार भगवान परशुराम का प्राकट्य भृगु वंश में महर्षि ऋचीक के पुत्र जमदग्नि और महर्षि रेणु की पुत्री रेणुका के पुत्र रूप में प्रकट हुए!! भगवान परशुराम का अवतार वामन अवतार के बाद एवं रामावतार के पूर्व हुआ है! सतयुग और त्रेता के संधिकाल में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि के रात्रि के प्रथम प्रहर में पुनर्वसु नक्षत्र में छ: उच्च ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते हुए हुआ था! भगवान परशुराम पितृभक्ति में अपने पिता के आदेश पर माता के वध और प्रसन्न पिता से वरदान स्वरूप अपने माता का पुनर्जीवन भाइयों को पिता के कोप से मुक्त कराने के पुरस्कार स्वरूप चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त किये जिस कारण परशुराम जी सतयुग से त्रेता युग औरद्वापर युग में लीला के रूप में पौराणिक कथाओं में प्राप्त होते हैं! ऐसा माना जाता है कि वे कल्प के अंत तक धरती पर तपस्या रत रहेंगे और कलियुग के अंत में कल्कि अवतार के भी साक्षी बनेंगे!
भगवान परशुराम परम शिवभक्त थे! वर्तमान उडीसा में स्थित महेंद्र गिरि पर्वत जो उनका निवास स्थान माना जाता है वहाँ तपस्या करके भगवान शिव से वरदान स्वरूप अमोघ परशु और विजया नामक धनुष प्राप्त कर परम पराक्रमी हुए थे! राम नाम धारी भगवान परशु धारण करने के कारण परशुराम नाम से विख्यात हुए! सतयुग में एक बार श्री गणेश जी ने शिव दर्शन से परशुराम जी को रोक दिया तो रूष्ट परशुराम जी ने उनपर अमोघ परशु से प्रहार कर दिया जिससे गणेश जी का एक दांत नष्ट हो गया और वे तबसे एकदंत कहलाये! त्रेतायुग में जहाँ आपने दुष्ट आततायी सहस्रार्जुन सहित हैहयवंशी क्षत्रियों को 21 बार विनाश कर पृथ्वी को भारमुक्त किया वहीं क्षत्रिय वंशीय सूर्य वंश के परम प्रतापी पुण्य पुंज राजा दशरथ और चंद्रवंशीय राजा जनक का समुचित आदर व सम्मान किया!माँ सीता के स्वयंवर में स्वयं के सातवें अवतार में आए भगवान श्री राम से साक्षात्कार होने पर अभिनंदन कर उन्हें उनका धनुष समर्पित किया! द्वापर युग में भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र समर्पित किया और भीष्म द्रोण कर्ण को युद्ध कौशल की शिक्षा प्रदान किया! कर्ण को असत्य वाचन के दंडस्वरूप सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप भी दिया था! भगवान परशुराम वैष्णवास्त्र, ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र के ज्ञाता थे जिससे द्रोण और भीष्म ने यह ज्ञान प्राप्त किया था!
वाराह पुराण के अनुसार आज के अक्षय तृतीया तिथि को उपवास रखकर भगवान परशुराम के पूजन करने से अगले जन्म में राजा बनने का योग प्राप्त होता है! यदि पुत्र की कामना से व्रत और परशुराम जी का पूजन करें तो उनके जैसा ही निडर और गुणवान, पराक्रमी पुत्र प्राप्त होता है।