Reported By: न्यूज अड्डा डेस्क
Published on: Apr 5, 2021 | 2:05 PM
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पिपरा बाजार/कुशीनगर। यूंतो ग्रामीण रीति रिवाजों के नाम पर कई ऐसी प्रथाएं हैं,जो परम्परा का प्रतीक है।प्रबुद्ध वर्ग इनमें से बहुतों को सामाजिक कुरीतियां ही समझता है।इन्हीं प्रथाओं में से एक है घूंघट करना,जो ग्रामीण क्षेत्र में बहुत ज्यादा है।भले ही गांव व क्षेत्र का चुनाव पढ़ी लिखी बहुएं लड़ रही हैं,लेकिन प्रथाएं उन्हें आज भी घेरे हुए हैं।क्षेत्र के दर्जनो से अधिक गांवों में घूंघट की आड़ में ही पढ़ी लिखी बहुएं घर-घर वोट मांगती हुई नजर आती है।इन्हें अपने मन की बात भी घूंघट से ही कहनी पड़ रही है।तो कुछ महिला प्रत्याशियों का चुनाव अभी भी उनके पति,ससुर, देवर व जेठ के इर्द गिर्द ही सिमट कर रह गया है और अभी भी वह घर की दहलीज के अंदर ही समेटे हुए हैं और उनके पक्ष में पुरुष ही वोट मागते हुए नजर आ रहे है।
वैसे तो हम पढ़े लिखे संभ्रांत समाज की कहानियां सुनना पसंद करते हैं।पढ़ी लिखी महिलाएं जब वोट मांगने के वक्त घूंघट नहीं हटा पा रही हैं तो वे चुने जाने के बाद क्या कर पाएंगी,यह आम मतदाताओं के अब जुबान पर आने लगा है तो वही कुछ क्षेत्रों में पुरुष ही महिला प्रत्याशियों के लिए मतदान की अपील करते हुए दिखाई दे रहे हैं और जिला पंचायत महिला प्रत्याशियों के अपने क्षेत्र के गाँवो की भौगोलिक स्थिति तक का ज्ञान नही है और न वे अब तक जनता की समस्याओं से ही रूबरू हो सकी हैं।लोगो का कहना है कि जब हमारे घर में हमारी बेटियां घूंघट नहीं करती तो दूसरे घर से आने वाली बेटी से क्यों घूंघट कराया जाता है।बस यह पुरुषवादी समाज की मानसिकता है।इसे बदलना ही होगा।जब यही पुरुष प्रधान समाज उन्हें राजनीति में आने का अवसर प्रदान कर रहा हैं फिर शासन की ओर से दिए गए उनके अधिकारों का हनन क्यो हो रहा है जबकि सार्वजनिक मंच पर सभी महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं और जब यही नारा व स्लोगन उनके घरों तक पहुचती हैं फिर पर्दा ……..
अब जनता भी अपने प्रतिनिधियों से खुद रूबरू होना चाहती हैं अब देखा जाय कि कब ये महिला प्रत्याशी अपने घर की दहलीज से बाहर निकल जनता के बीच पहुचती हैं और वास्तव में जनता का प्रतिनिधित्व करती हैं या कठपुतली व्यवस्था तक ही सिमट कर रह जाती हैं।यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
Topics: नेबुआ नोरंगिया