Reported By: Surendra nath Dwivedi
Published on: Aug 14, 2025 | 9:12 AM
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कुशीनगर । सूबे की सरकार लगातार निर्देश देती है कि हर विभाग तय मानकों के अनुसार काम करे, ताकि जनता को सुविधा और सरकार को पूरा राजस्व मिल सके। लेकिन जनपद कुशीनगर में यह हकीकत बिल्कुल उलटा है। आरटीओ और यात्री कर अधिकारी की कथित मिलीभगत ने न केवल यातायात नियमों को मज़ाक बना दिया है, बल्कि सरकार को रोज़ाना लाखों का राजस्व नुकसान भी हो रहा है।
राष्ट्रीय राजमार्ग से होकर विभिन्न प्रांतों से आने-जाने वाली लक्ज़री बसें टूरिस्ट कागज़ात के सहारे खुलेआम यात्रियों का परिवहन कर रही हैं। कागज़ात में ‘टूरिस्ट बस’ दर्ज, लेकिन असल में खचाखच भरी यात्री बसें। इन गाड़ियों पर न कोई सख़्त चेकिंग होती है, न ही किसी प्रकार की कार्यवाही। सूत्रों के अनुसार, इस अवैध कारोबार को कथित रूप से आरटीओ और यात्री कर अधिकारी का संरक्षण प्राप्त है।
जानकारी के मुताबिक, हर दिन करीब दो दर्जन से अधिक लक्ज़री बसें कुशीनगर होकर गुजरती हैं। इन बसों में क्षमता से कहीं अधिक यात्री ठूँस-ठूँसकर बैठाए जाते हैं, जबकि छतों पर भारी सामान का अंबार लदा रहता है। यह न केवल यात्री सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि संभावित सड़क हादसों का सीधा निमंत्रण भी है।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि ये बसें उत्तर प्रदेश–बिहार सीमा स्थित टोल प्लाज़ा सलेमगढ़ से गुजरते समय ओवरलोड होने के कारण अतिरिक्त फाइन भी अदा करती हैं। इसका मतलब है कि अधिकारियों के पास प्रमाण भी है कि ये बसें ओवरलोड हैं। बावजूद इसके, उप संभागीय परिवहन अधिकारी कुशीनगर द्वारा अब तक एक भी सख़्त कार्रवाई नहीं की गई।
जब प्रमाण मौजूद हैं, तो कार्रवाई क्यों नहीं? क्या यह सीधे-सीधे मिलीभगत का मामला है? या फिर यात्रियों की सुरक्षा और सरकार के राजस्व से ज़्यादा प्राथमिकता जेब भरने को दी जा रही है?
❓ जब टोल पर बसें ओवरलोड साबित हो रही हैं, तो कार्रवाई क्यों नहीं?
🔹 यह सवाल हर यात्री और जिम्मेदार नागरिक के मन में उठ रहा है।
❓ यात्रियों की जान से खिलवाड़ पर जिम्मेदार चुप क्यों हैं?
🔹 हादसे की सूरत में जिम्मेदारी किसकी होगी—बस मालिक, चालक या अधिकारी?
❓ सरकार का राजस्व बचाना प्राथमिकता है या अवैध कमाई?
🔹 रोज़ाना लाखों का नुकसान—क्या यह मिलीभगत का नतीजा है?
कुशीनगर में ओवरलोड लक्ज़री बसों का यह खेल रोज़ जारी है। सरकार के मानकों और सुरक्षा नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं, यात्रियों की जान जोखिम में है और राजस्व को लगातार चोट पहुँच रही है। अब देखना यह है कि सूबे की सरकार इस ‘युगलबंदी’ पर कब और कैसे नकेल कसती है।
(शेष अगले अंक में…)
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