Reported By: Surendra nath Dwivedi
            
                Published on: Feb 7, 2024 | 5:32 PM            
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                        सलेमगढ़/कुशीनगर। राष्ट्रीय राज मार्ग के किनारे स्थित लतवा बजार में हो रहे पंचमुखी हनुमत प्राण प्रतिष्ठा महायज्ञ और कथा के आखरी दिन कथा वाचक ने कथा का विषय संदर्भ बदलते हुए श्री कृष्ण सुदामा मिलन प्रसंग की कथा सुनाई, जिसमे पंडाल में उपस्थित हजारों नर और नारियों की नैना बरस गए, बुधवार की कथा अत्यंत ही मार्मिक,मित्रता पर आधारित रही की मित्र,सखा हो तो कैसा।
कथा वाचक पंडित राम अवध शुक्ल द्वारा आज की कथा प्रसंग पर बोलते हुए कहा गया की सुदामा जी शिक्षा और दीक्षा के बाद अपने ग्राम अस्मावतीपुर (वर्तमान पोरबन्दर) में भिक्षा मांगकर अपना जीवनयापन करते थे, सुदामा एक गरीब ब्राह्मण थे। विवाह के बाद वे अपनी पत्नी सुशीला और बच्चों को बताते रहते थे कि मेरे मित्र द्वारिका के राजा श्रीकृष्ण है जो बहुत ही उदार और परोपकारी हैं। यह सुनकर एक दिन उनकी पत्नी ने डरते हुए उनसे कहा कि यदि आपने मित्र साक्षात लक्ष्मीपति हैं और उदार हैं तो आप क्यों नहीं उनके पास जाते हैं। वे निश्चित ही आपको प्रचूर धन देंगे जिससे हमारी कष्टमय गृहस्थी में थोड़ा बहुत तो सुख आ जाएगा। सुदामा संकोचवश पहले तो बहुत मना करते रहे लेकिन पत्नी के आग्रह पर एक दिन वे कई दिनों की यात्रा करके द्वारिका पहुंच गए। मात्र एक ही फटे हुए वस्त्र को लपेट गरीब ब्राह्मण जानकर द्वारपाल ने उन्हे प्रणाम कर यहां आने का आशय पूछा। जब सुदामा ने द्वारपाल को बताया कि मैं श्रीकृष्ण को मित्र हूं तो द्वारपाल को आश्चर्य हुआ। फिर भी उसने नियमानुसर सुमादाजी को वहीं ठहरने का कहा और खुद महल में गया और श्रीकृष्ण से कहा, हे प्रभु एक फटेहाल दीन और दुर्बल ब्राह्मण आपसे मिलना चाहता है जो आपको अपना मित्र बताकर अपना नाम सुदामा बतलाता है।
द्वारपाल के मुख से सुदामा नाम सुनकर प्रभु सुध बुध खोकर नंगे पैर ही द्वार की ओर दौड़ पड़े। उन्होंने सुदामा को देखते ही अपने हृदय से लगा लिया और प्रभु की आंखों से आंसू निकल पड़े,वे सुदामा को आदरपूर्वक अपने महल में ले गए। महल में ले जाकर उन्हें सुंदर से आसन पर बिठाया और अपनी रानी रुक्मिणी संग उनके पैर धोये।
कथा वाचक श्री शुक्ल जी महराज कहते है कि प्रभु को उनके चरण धोने के जल की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। उनकी दीनता और दुर्बलता देखकर उनकी आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी। स्नान, भोजन आदि के बाद सुदामा को पलंग पर बिठाकर श्रीकृष्ण उनकी चरणसेवा करने लगे और गुरुकुल में बिताए दिनों की बातें करने लगे। बातों ही बातों में यह प्रसंग भी आया कि किस तरह दोनों मित्र वन में समिधा लेने गए थे और रास्ते में मूसलधार वर्षा होने लगी तो दोनों मित्रों एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गए। सुदामा के पास एक पोटली में दोनों के खाने के लिए गुरुमाता के दिए कुछ चने थे। किंतु वृक्ष पर सुदामा अकेले ही चने खाने लगे। चने खाने की आवाज सुनकर श्रीकृष्ण ने पूछा कि क्या खा रहे हैं सखा? सुदामा ने यह सोचकर झूठ बोल दिया कि कुछ चने कृष्ण को भी देने पड़ेंगे। उन्होंने कहा, कुछ खा नहीं रहा हूं। यह तो ठंड के मारे मेरे दांत कड़कड़ा रहे हैं।
बुधवार के कथा का मुख्य अतिथि ठाकुर रोड लाइंस के प्रबंध निदेशक मृत्युंजय ठकुराई उर्फ बुलेट बाबू,की टीम युवा समाज सेवी मुकेश शाही, ऋषिकेश ठकुराई,आशीष शाही जी रहे।जिन्होंने ब्यास जी की आरती उतारी,साथ ही पूजन अर्चन कर कथा का श्री गणेश कराया। साथ ही ब्यास गद्दी से कथा वाचक द्वारा सभी अतिथियों को सरल गीता की पुस्तक जहा भेट किया गया,वही रामनामी दुपट्टा गले में धारण करा कर आशीर्वाद दिया गया।
हनुमत कथा और पंचमुखी हनुमत प्राण प्रतिष्ठा महायज्ञ के यजमान पूर्व प्रधान घनश्याम गुप्ता, यजमान मुन्ना राय, ग्राम प्रधान लतवा मुरलीधर वरिष्ठ अधिवक्ता पत्रकार बाबू रजनीश राय, सामाजिक समाज सेवी अवधेश राय, शम्भू राय, पूर्व प्रधान टुनटुन राय द्वारा ब्यास जी की आरती कर आज की कथा का विश्राम किया गया ,इस अवसर पर समाज सेवी राजू राय,टुनटुन राय,जयप्रकाश कुशवाहा, विनोद राय, संतोष राय,विरेन्द्र पांडेय ग्राम प्रधान,द्वारिका राय,डा सुभाष तिवारी, उमेश राय, ओमप्रकाश कुशवाहा,शशि राय, दिग्विजय राय, अवध गुप्ता, सुभाष यादव,अरविंद गुप्ता,राजेश राय, आशुतोष राय, रंजन राय,सहित भारी सख्या में पुरुष और महिलाएं कथा की रसवादान किया। वही शांति सुरक्षा बंदोबस्त में स्थानीय तमकुहीराज थाना की महिला और पुरुष पुलिस बल उपस्थित रहे। कथा का सफल संचालन का निर्वाहन बेखूबी समाजसेवी बाबू अवधेश जी राय द्वारा पांच दिनों तक किया गया,जिसको सभी सनातन धर्म अनुआइयो ने सराहा।
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