गोरखपुर। पुलिस का नाम आते ही आम आदमी के ज़हन में सबसे पहले खौफ और सख़्ती का चेहरा उभरता है। वजह साफ़ है—अपराध और अपराधियों से निपटने के लिए पुलिस को अक़्सर कठोर रवैया अपनाना पड़ता है। लेकिन हर तस्वीर के दो पहलू होते हैं। गोरखपुर में तैनात एक ऐसे आईपीएस अधिकारी हैं, जिनकी पुलिसिंग में कानून का डंडा भी है और इंसानियत की मिठास भी।यह कहानी है आईपीएस लक्ष्मी निवास मिश्र की, जो इन दिनों जीआरपी गोरखपुर अनुभाग के पुलिस अधीक्षक पद की ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं।
बताते चलें कि साधारण परिवार से आईपीएस तक का सफर में लक्ष्मी निवास मिश्र का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। शुरुआती जीवन चुनौतियों से भरा रहा, लेकिन लगन, मेहनत और शिक्षा के बल पर उन्होंने वह मुकाम हासिल किया, जहां पहुंचना लाखों युवाओं का सपना होता है। आईपीएस बनने के बाद उनका उद्देश्य सिर्फ अपराध नियंत्रण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने हमेशा जनता की भलाई को प्राथमिकता दी। सख़्ती और सेवा का अनोखा संगम में रेलवे जैसे संवेदनशील ज़ोन में तैनाती आसान नहीं। रोज़ाना हज़ारों यात्रियों की आवाजाही, अपराधियों की सक्रियता और सुरक्षा का दबाव। लेकिन लक्ष्मी निवास मिश्र ने शांत स्वभाव और तेज दिमाग से न सिर्फ अपराधियों पर शिकंजा कसा, बल्कि यात्रियों के बीच सुरक्षा की भावना भी जगाई।
उनकी एक खासियत है—त्वरित निस्तारण। स्टेशन परिसर या ट्रेन में कोई समस्या आते ही वे तुरंत एक्शन लेते हैं। यही वजह है कि उनकी छवि एक सख़्त लेकिन संवेदनशील पुलिस अधिकारी के रूप में बनी है।
यहां बताना चाहूंगा कि जनता से रिश्ता – दोस्ताना और भरोसेमंद के वाहक ने
इस संवाददाता से बातचीत में कहा – “मेरी पहली प्राथमिकता जनता है। अपराध पर नियंत्रण ज़रूरी है, लेकिन उससे भी अधिक आवश्यक है कि जनता पुलिस पर भरोसा करे। पुलिस का व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि लोग बिना डर के अपनी समस्याएं हमारे सामने रख सकें। हम जनता के सेवक हैं, मालिक नहीं।”
उनकी यह सोच उन्हें भीड़ से अलग बनाती है। आम लोग कहते हैं कि एसपी मिश्र से मिलना आसान है, वे ध्यान से सुनते हैं और समाधान में व्यक्तिगत दिलचस्पी लेते हैं।जनता की नज़र में ‘जनपुलिस’ ! रेलवे स्टेशन पर मिले कुछ यात्रियों ने बताया कि उनकी तैनाती के बाद घटनाओं में कमी आई है और यात्रियों को सुरक्षा की गारंटी महसूस होती है। एक यात्री ने कहा—
“पहले स्टेशन पर छोटी-मोटी वारदातें आम थीं। अब माहौल बदला है। पुलिस चौकस रहती है और एसपी साहब खुद फील्ड में उतरते हैं। ऐसे अधिकारी कम ही मिलते हैं।”
आईपीएस लक्ष्मी निवास मिश्र का मानना है कि पुलिसिंग सिर्फ अपराध से लड़ना नहीं, बल्कि ज़रूरतमंद का सहारा बनना भी है। वे कहते हैं—“अगर मैं किसी ज़रूरतमंद को उसके हालात के मुताबिक मदद कर सकूं, तो यही मेरे लिए सबसे बड़ा संतोष है।” नज़रिया बदलने वाली पुलिसिंग एसपी मिश्र की कार्यशैली यह साबित करती है कि पुलिस सिर्फ खौफ का दूसरा नाम नहीं, बल्कि भरोसे और हमदर्दी की पहचान भी हो सकती है। वर्दी में सख़्ती तो है, लेकिन दिल में इंसानियत भी। यही वजह है कि गोरखपुर की जनता उन्हें एक “जनपुलिस अधिकारी” के रूप में देखती है।
यह कहानी न सिर्फ पुलिस की छवि पर से धूल हटाती है, बल्कि हमें यह भी याद दिलाती है कि वर्दी के पीछे भी एक इंसान होता है, जो जनता का हितैषी और सच्चा सेवक हो सकता है।
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