इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जिला प्रशासन किसी भी हालत में रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दे सकता. साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि किसी मस्जिद में लाउडस्पीकर से अजान पढ़ने के लिए प्रशासन की अनुमति लेनी जरूरी होगी. बिना प्रशासन की अनुमति लिए लाउडस्पीकर से अजान पढ़ना गैरकानूनी होगा.
प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के गाजीपुर समेत तीन जिलों की मस्जिदों में अजान पर लगी रोक के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजीपुर, हाथरस और फर्रुखाबाद के जिलाधिकारियों के आदेश को रद्द करते हुए मस्जिदों से मौखिक अजान की अनुमति दे दी है, लेकिन लाउडस्पीकर से अजान की अनुमति नहीं दी.
जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की बेंच ने कहा कि मुअज्जिन बिना लाउडस्पीकर या अन्य किसी उपरकण के अपनी आवाज में मस्जिदों से अजान पढ़ सकता है. मस्जिदों में अजान से कोविड-19 की गाइडलाइन का कोई उल्लंघन नहीं होता है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अजान को धार्मिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ मामला बताया, लेकिन लाउडस्पीकर से अजान को इस्लाम का हिस्सा नहीं बताया.
लाउडस्पीकर से अजान के लिए लेनी पड़ेगी इजाजत
कोर्ट ने कहा कि जिला प्रशासन किसी भी हालत में रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दे सकता. साथ ही कोर्ट ने कहा कि किसी मस्जिद में लाउडस्पीकर से अजान पढ़ने के लिए प्रशासन की अनुमति लेनी जरूरी होगी. बिना प्रशासन की अनुमति लिए लाउडस्पीकर से अजान पढ़ना गैरकानूनी होगा.
ऐसे कोर्ट पहुंचा मामला
गौरतलब है कि रमजान के दौरान गाजीपुर के डीएम ने लॉकडाउन में मस्जिदों से अजान पर मौखिक आदेश से रोक लगा दी थी. इस आदेश के खिलाफ गाजीपुर से बीएसपी सांसद अफजाल अंसारी ने ईमेल के जरिए हाईकोर्ट को पत्र भेजकर शिकायत की थी. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील सैयद वसीम कादरी ने भी इस मामले में याचिका दाखिल की थी. ऐसा ही मामला हाथरस और फर्रुखाबाद जिलों से भी आया था.
लॉकडाउन के उल्लंघन का खतरा बता बंद करवाई थी अजान
हाथरस और फर्रुखाबाद जिलों में इसी तरह की रोक के खिलाफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. तीनों जिलों में डीएम ने मौखिक आदेश से अजान पर रोक लगा रखी थी. इस मामले में सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल ने बहस की. उन्होंने सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए कहा था कि अजान से लोगों के मस्जिदों में इकठ्ठा होने और लॉकडाउन के उल्लंघन का खतरा है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सैयद सफदर अली काजमी ने सरकार के पक्ष का विरोध किया था. उन्होंने कोर्ट को बताया कि लॉकडाउन के दौरान मस्जिदों में जमात में नमाज अदा नहीं की गई है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 5 मई को दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. शुक्रवार को जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की डिवीजन बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए याचिकाएं निस्तारित कर दी हैं.
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