Reported By: न्यूज अड्डा डेस्क
Published on: Jun 15, 2021 | 10:37 PM
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तमकुहीराज/कुशीनगर | उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राजनैतिक दल अपने सलाहकारों के साथ विचार विमर्श कर योजनाएं बना रहे, कोई गठबंधन का खाका तैयार कर रहा तो कोई जातीय समीकरण को साधने के योजना पर काम कर रहा है। जबकि कुशीनगर जनपद के तमकुहीराज विधानसभा में भाजपा से नाता तोड़ समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके पूर्व विधायक पण्डित नन्दकिशोर मिश्र के पक्ष में अल्पसंख्यक वर्ग के युवाओं ने सोशल मीडिया पर अभियान शुरू कर उनके कार्यशैली की सराहना कर क्षेत्र में उनके लोकप्रियता को बता रहे है।
तमकुहीराज विधानसभा के नागरिकों की माने तो इस क्षेत्र में जनहित में किये गए संघर्षो के बल पर जनप्रतिनिधि अपना मुकाम हासिल करते रहें है। बीच मे एक समय ऐसा भी आया कि कुछ लोगों को राजनैतिक समीकरण ने उनके भाग्य में चार चाँद लगा दिया। इधर कुछ वर्षों में जनसमस्याओं को लेकर आंदोलन, धरना, प्रदर्शन गौण हो गया। फिर भी कुछ नेताओं द्वारा जनहित में किया गया संघर्ष उनके नाम के साथ ऐसा जुड़ गया, जिसको लेकर उनकी चर्चा हर जुबान पर अब भी है। जबकि विकास कराने का दावा करने वाले जनप्रतिनिधि समय के साथ विलुप्त होते गये। ऐसे ही एक नाम पूर्व विधायक पंडित नन्दकिशोर मिश्र का है, जो अपने विधायकी के दौरान अपने ही सरकार के साथ जमुआन पुल के एप्रोच बनाने के लिए अनशन पर बैठने की बात रही हो या फिर गन्ना मिल बन्द होने के बाद किसानों के खेतों में खड़े गन्ने का सर्वे कराकर उसका भुगतान कराना रहा हो। उनके इस काम ने उन्हें लोगों से ऐसे जोड़ा की राजनीति में उनका नाम आज भी एक दमदार जनप्रतिनिधि के रूप में लिया जाता है। इतनाही नहीं वे अभी विधायक भले ही नहीं है, लेकिन जनता उन्हें उनके नाम से नहीं विधायक जी के नाम से पुकारती है।
यहां समय के अनुसार बदलाव भी हुआ,स्व. बाबू गेंदा सिंह के बाद क्षेत्र के विकास के कड़ी में स्व. रामसकल तिवारी, डॉ. पी के राय का नाम भी लिया जाता है। यह दीगर बात है कि सबकी अपनी छवि और कार्यशैली अलग अलग रही है।
पूर्व विधायक पंडित नन्दकिशोर मिश्र पहले आरएसएस के प्रचारक रहें, वर्ष 1980 से सेवरही जो अब तमकुहीराज विधानसभा बन गया है, से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे है। वे दो बार विधायक भी चुने गये। उनका संघर्षो का लम्बा इतिहास है। लेकिन वर्ष 2017 में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया। वे निर्दल चुनाव मैदान में उतर गये, तब वे चुनाव तो नहीं जीत पाये, लेकिन भाजपा भी चुनाव हार गयी। फिर राजनैतिक समीकरण और सपा से गठबंधन के बदौलत वर्तमान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू पुनः विधायक बन गये। इस चुनाव में कांग्रेस 60 हजार से ऊपर, भाजपा 40 हजार से ऊपर बसपा 40 हाजर के करीब वोट पायी थी जबकि पण्डित नन्दकिशोर मिश्र आर्थिक संकट, प्रचार के अभाव के बाद भी 24 हजार के करीब वोट पाकर शानदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। दूसरी बात तमकुहीराज विधानसभा ही नहीं आसपास के क्षेत्रों के ब्राह्मण आज भी उन्हें ही अपना नेता मानते है, यह दीगर बात है कि कुछ चर्चित ब्राह्मण इस दावे के खण्डन जोरशोर से करते है, उतनाही सत्य यह भी है कि विभिन्न दलों के राजनीति में सक्रिय ब्राह्मण नेता यह कहने से नहीं चूक रहे कि विधायक जी (पण्डित नन्दकिशोर मिश्र) को किसी भी दल ने टिकट दिया तो वे उनके साथ रहेगें। मतलब साफ हो जाता है कि ब्राह्मणों की इच्छा क्या है। जबकि पण्डित नन्दकिशोर मिश्र ने यह साफ कर दिया है कि राजनीति में मेरा जन्म भले ही भाजपा में हुआ था, लेकिन अन्तिमा सांस सपा में ही लूँगा। उनके वेवाक शब्द, सामने सत्य असत्य की टिप्पड़ी लोगों को उनसे जोड़ने में कड़ी का काम करती रही है।
सपा में उनकी क्या स्थिति है, वे कितने मजबूत है, सपा उनको टिकट देगी या नहीं यह तो भविष्य के साथ पार्टी और उनके क्षमता पर निर्भर करता है, लेकिन इधर कुछ दिनों से अल्पसंख्यक वर्ग के शिक्षित युवाओं ने सोशल मीडिया पर जो मुहिम चला रखा है उससे एक बात का संकेत तो साफ लग रहा कि उनकी लोकप्रिय बढ़ रही है। सोसल मीडिया पर उनके कार्यशैली, भाजपा में रहते अल्पसंख्यक वर्ग को दिए गए सम्मान, भाजपा से चुनाव लड़ने के दौरान तीन से चार हजार अल्पसंख्यक मतदाताओं द्वारा उनके पक्ष में मतदान करने जैसी बातों को आज पूरी तरह बल मिल रहा है।
वैसे यह राजनीति है, राजनीति और क्रिकेट में किस बल पर छक्का लग जाय और किस बल पर विकट उखड़ जाय यह कहना मुश्किल है, लेकिन आज के गर्म सियासी माहौल में पूर्व विधायक नन्दकिशोर मिश्र के पक्ष में सोशल मीडिया पर जिस तरह की खबरें पोस्ट हो रही है, वह निश्चित ही राजनीति के जानकारों को अचंभित कर रही है।
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